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एजुकेशनफरीदाबाद

पढिय़े देश-विदेश में शिक्षकों पर शिक्षाविद्व कुलदीप सिंह का एक विश्लेषण

मैट्रो प्लस से मोहित गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 30 मार्च: भारत तथा विदेशों के वेतन आश्रित शिक्षकों को दो प्रमुख वर्गों में रख सकते हैं-प्रथम कुशल एवं पारंगत अच्छे, शिक्षणकर्मी तथा दूसरे अकुशल एवं अनुभवहीन अनुपयोगी, शिक्षणकर्मी। प्रथम प्रकार के शिक्षणकर्मी अपने विषय पर अच्छी पकड़ रखते हैं और अपने विषय को दूसरों को समझाने की कुशलता में अत्यंत निपुण होते हैं-अपनी जानकारी और ज्ञान को दूसरों को प्रभावी ढंग से समझा देते हैं। दूसरे वर्ग के शिक्षणकर्मी अपने विषय का ज्ञान तो रखते हैं पर अपने विषय को गहराई तक जाकर समझने का अनुभव नहीं रखते। अत: शिक्षण करते समय विषय अस्पष्ट रह जाता है। साथ ही अपने ज्ञान को ज्ञानार्थियों तक प्रभावी ढंग से पहुंचाने में भी सफल नहीं होते।
यह स्वाभाविक त्रुटि, जो शिक्षा-लाभार्थियों को पढ़ाये जा रहे विषय को स्पष्ट रूप से समझने से वंचित कर देती है, शिक्षणकर्मी की अपनी समझ और विषय की गहराई में न जाने के कारण ही होती है। सामान्यत: यही शिक्षणकर्मी अधिकतर अपने शिक्षण-कक्ष में शिक्षा-लाभार्थियों को अनुशासित रखने में असफल रहते हैं। अब अन्य प्रकार से वर्गीकृत करने पर हमें दो तरह के शिक्षणकर्मी मिलते हैं पहले सम्पूर्ण शिक्षक, दूसरे अर्धशिक्षक/सम्पूर्ण शिक्षक कुशल पारंगत शिक्षणकर्मी होते हैं जो शिक्षण के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों को संस्कारवान भी बनाते हैं, परंतु ऐसे कुशल शिक्षक जो विद्यार्थियों को संस्कारवान बनाने का दायित्व निर्वाह नहीं कर पाते और अपने छात्रों को आदर्श समाज के निर्माण के योग्य बनाने की जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करते, अर्ध शिक्षक ही रह जाते हैं।
वर्तमान में शिक्षकों की एक अलग नए तरह की किस्म वेब इन्टरनेट माध्यमों के प्रयोगों से निकलकर आयी है। ये वो शिक्षक हैं जो अपने विषय की जानकारी और समझ को वीडियो में रूपांतरित कर यू-टयूब और अन्य साइटों पर डालकर ज्ञान बांटते हैं और विद्यार्थी उनसे लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। इन्हें भी उसी प्रकार कुशल और अकुशल वर्गो (अच्छे या बुरे) वर्गो में रखा जा सकता है। इस तरह के कुशल पारंगत शिक्षकों की अच्छाई की सर्वोच्चता तब हमें और भी प्रभावित करती है जब वो अपने द्वारा दिए ज्ञान और समझ को ज्ञानार्थियों तक पहुंचाने के लिए किसी तरह के शुल्क या धन की मांग नहीं करते और पाठन के अंत में वीडियो में कहते नजर आते हैं कि इस वीडियो को देखने के लिए आपको धन्यवाद। मैं इसे ”मानवताÓÓ का ऐसा आदर्श कहूंगा जो किसी भी अच्छे समाज को योग्य बनाता और बढ़ाता है।
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह की संकल्पना और प्रयोग पुराने समय की गुरुकुल शिक्षा पद्धति में तो अवश्य देखने को मिलती है बल्कि भारत तो बहुत आगे था, परन्तु दुर्भाग्य से आज तो ऐसा कोई गुरुकुल भारत में कहीं दिखाई नहीं पड़ता। ऐसा नहीं है कि ऐसा दोबारा किया नहीं जा सकता। आज समाज में एक से बढ़कर एक धन कुबेर मौजूद हैं, परंतु भारत का आज का शिक्षा-तंत्र ही कुछ इस प्रकार का बना है जो इस तरह की संकल्पना और प्रयोगों को आगे आने से रोक देता है।
फिर आज भारत में क्या दिखाई देता है-हमारे देश में सरकारी स्कूलों के रूप में अनुपयोगी गुरुकुल हैं और हमारी सरकारें निजी स्कूलों को भी, सन् 1947 से ही औचित्यहीन गुरुकुलों के रूप में तब्दील करने की कोशिश में लगी रही हैं।

,Teachers in India and Abroad

  1. Teachers in India and Abroad who insist on a salary can be put in two categories.
  2. Good Professionals
  3. Bad Professionals
  1. Good Professionals: are those who understand their subject and are versatile in the communication of their subject – Those who can transmit their understanding of knowledge efficiently.
  1. Bad Professionals: are those who have knowledge of their subject, but lack depth in understanding of their subject. Also they fail to communicate their knowledge efficiently. It is but a natural corollary of their lack of understanding. They naturally in most cases fail to maintain discipline in the classroom.
  2. Then there are whole teachers and half teachers.

Whole Teachers: are those who are Good Professionals as well as who take responsibility for the ethics of their students.

Half Teachers: are those who are Good Professionals but fail to be responsible for the ethics of their students. Thus are incapable to add values of their society into their students.

  1. The Web Internet has produced a totally different genre of teachers recently. These are teachers who have uploaded videos of their teachings on you tube and WWW.

These can again be categorised as Good teachers and Bad Teachers on the lines of Good Professionals and Bad Professionals.

  1. Then on the Apex of their profession are those who are called Good Teachers who do not explicitly demand money but having communicated their knowledge and understanding at the end of their lesson, say “Thank you for watching this video.”

I would call it humility – a value in any good society worth nurturing.

  1. In India we came very near or perhaps surpassed this Frontier in our Gurukuls of yore. Alas! I don’t see such Gurukuls in India anymore. Not that it is not possible. It is possible. We have billionaires in our society. But the system in India is structured in such a way that it is made impossible.
  1. What we have today instead are Bad Gurukuls called Government Schools. Since 1947 successive governments have been hell bent to lower the standard of Private Schools by unnecessary interference.

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