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पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध हटाने को लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट में मजबुती से रखेगी उद्योगपतियों का पक्ष

उद्योगपति नरेन्द्र अग्रवाल ने पेट कोक व फर्नेस ऑयल मामले में सरकार के समक्ष रखा उद्योगपतियों का पक्ष
मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद/नई दिल्ली, 24 नवंबर: पर्यावरण को लेकर भूरेलाल कमेटी की 4 अप्रैल की रिपोर्ट का खामियाजा एनसीआर से लगते हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के उद्योगपतियों को अपनी कंपनी बंद कराकर भुगतना पड़ेगा यदि सुप्रीम कोर्ट व सरकार ने इस मामले में कोई रूचि ना दिखाई।
पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगाने की बजाए सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वो अपने 2 मई, 2017 के फैसले को क्रियान्वित करने के आदेश केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) को जारी करे जिसकी लेट-लतीफी का खामियाजा हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के उद्योगपतियों को भुगतना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाते हुए उद्योग जगत फरीदाबाद के जाने-माने उद्योगपति एवं फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एफआईए) के उप-प्रधान व पर्यावरण पैनल के चेयरमैन नरेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि वो भी चाहते है कि पर्यावरण ठीक हो व सबको प्रदुषण से मुक्ति मिले। लेकिन जिस तरीके से पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगाया गया है, वो उद्योग जगत के लिए एक काला अध्याय साबित होगा। नरेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई, 2017 को एमओईएफ को आदेश जारी कर कहा था कि वो दो महीने यानि 30 जून तक पेट कोक व फर्नेस ऑयल कंपनियों को लेकर स्टेंडर्ड बनाए और जो कंपनी यह स्टेंडर्ड पूरा करे उसे प्रतिबंध से छूट दी जाए। लेकिन एमओईएफ ने यह काम 30 जून तक पूरा करने की बजाए 23 अक्टूबर को पूरा किया। एमओईएफ की इस देरी का नतीजा यह नतीजा यह निकला कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगा दिया। नरेन्द्र अग्रवाल का कहना था कि वास्तव में देखा जाए तो एनसीआर में जो प्रदुषण है वो कंपनियों से मात्र 9 से 11 प्रतिशत है जबकि 40 प्रतिशत से ज्यादा प्रदुषण सरकार की लापरवाही के चलते सड़कों पर पड़े गंदगी के ढेरों तथा धुंआ फैंकते वाहनों से हो रहा है। बाकी का रहा सहा प्रदुषण बिल्डर फैला रहे हैं। जबकि इन सबकी मार पेट कोक व फर्नेस ऑयल का प्रयोग करने वाली कंपनियों पर नाजायज रूप से पड़ रही है। साथ ही नरेन्द्र अग्रवाल का कहना था कि पेट कोक व फर्नेस ऑयल प्रयोग करने वाली कंपनियां सरकार के उन स्टेंडर्ड को पूरा करने के लिए जब तैयार हैं तो फिर क्यों उनकी कंपनियों को पेट कोक व फर्नेस ऑयल का प्रयोग करने पर प्रतिबंध किया जा रहा है।
पर्यावरण के नाम पर पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगाकर सुप्रीम कोर्ट व सरकार ने उद्योगपतियों के पेट पर लात मारने का काम किया है। इस प्रतिबंध का परिणाम यह निकल रहा कि या तो उद्योगपतियों को अपनी कंपनी बंद करनी पड़ेगी या फिर महंगे दामों में गैस से खरीदकर अपनी कंपनी चलानी पड़ेगी। 17 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आने से पहले ही पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) ने 15 नवम्बर को सैंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के अंडर सेक्शन-5 ऑफ द एनवार्यमेंटल (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1986 के तहत हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध लगाकर जिस तरह से आर्थिक चोट मारी है, उससे उद्योगपतियों की कमर टूट गई है। गौरतलब रहे कि दिल्ली में तो पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर सन् 1996 से ही प्रतिबंध है जबकि उक्त तीनों राज्यों पर अब प्रतिबंध लगा है।
नरेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि इस प्रतिबंध को हटाने के लिए उन्होंने एफआईए के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री डॉ०हर्षवर्धन से भी मुलाकात का अपना पक्ष उनके सामने रखा था। मंत्री महोदय ने सारी बातों को सुनकर उन्हें आश्वस्त किया है कि वो इस मामले में सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सरकार और उद्योगपतियों का पक्ष मजबूती से रखेंगे।

पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध को लेकर एनटीपीसी ने याचिका वापस ली:-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेट कोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध को लेकर जारी की गई केंद्र सरकार की अधिसूचना में बदलाव नहीं होगा। एनटीपीसी ने याचिका दायर करके दलील दी थी कि फर्नेस आयल का इस्तेमाल बंद करने से कई राज्यों की बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है, लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रदूषण एक ज्यादा अह्म समस्या है।
जस्टिस मदन बी लोकुर व दीपक गुप्ता की बेंच ने याचिका को खारिज करने की बात कही, लेकिन उससे पहले ही इसे वापस ले लिया गया। एनटीपीसी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से अपील की कि प्लांटों में जो फर्नेस आयल का इस्तेमाल हो रहा है। इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए कुछ समय की जरूरत है। बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है और अदालत उसमें बदलाव करने नहीं जा रही है। आपको परेशानी है तो सरकार के पास जाए। मेहता का कहना था कि सरकार ने अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिपेक्ष्य में जारी की थी। सरकार इसमें बदलाव नहीं कर सकती, इसी वजह से अदालत से अपील की जा रही है। उनकी दलील थी कि एनटीपीसी कई राज्यों को बिजली आपूर्ति करती है। फर्नेस आयल पर रोक लगने से बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा। तब बेंच ने कहा कि क्या बच्चे व दिल्ली देश का हिस्सा नहीं हैं। इस मसले पर हडाल्को ने भी याचिका दायर की थी। अदालत के रुख को देखकर कंपनी ने याचिका वापस ले ली।
गौरतलब है कि 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पेट कोक व फर्नेस आयल के इस्तेमाल पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश व हरियाणा में प्रतिबंध लगा दिया था। एक नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ तीनों राज्यों में प्रतिबंध लागू हो गया है।


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