800 फीट लंबी सड़क के किनारे उकेर डाली है इन कलाकारों ने पूरे गांव की जीती-जागती तस्वीर
नवीन गुप्ता
फरीदाबाद, 28 जनवरी: देश का प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला सुरजकुंड में 1 से 15 फरवरी तक है। इस वर्ष का मेला छत्तीसगढ़ से आये दो कलाकार भाइयों अंकुश एवं अशोक देवांगन की लाजवाब कलाकृतियों से भी जाना जायेगा जिन्होंने अपनी अभूतपूर्व कला परिकल्पना का परिचय देते हुए पूरे मेला परिसर को राज्य की ग्रामीण संस्कृति से सजाया है। इसी कारण अभी से यह स्थल दर्शनीय हो गया है और लोगों की भारी भीड़ यहां खींची चली आ रही है।
इस बार सूरजकुंड का थीम स्टेट ‘छत्तीसगढ़ राज्यÓ है एवं कंट्री पार्टनर ‘लेबनानÓ है जहां इन कलाकार बंधुओं की मेहनत से पूरा मेला परिसर खिल उठा है। छत्तीसगढ़ जैसे अति-संवेदनशील नक्सल प्रभावित राज्य में रहते हुए भी अंतराष्ट्रीय कला जगत में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है। अपने साथ 50-60 सहायकों की टीम को लेकर वे पूरे ढाई महीने से सुरजकुंड में कलाकृतियों का निर्माण कर रहे है ताकि देश-विदेश से आने वाले लाखों सैलानियों के लिये इस बार का मेला कभी न भूलने वाला पल बन जाए। उनके द्वारा निर्मित आर्ट में प्रमुख है चार-मंजिली इमारत जितना विशाल भव्य प्रवेश द्वार ”छत्तीसगढ़ गेटÓÓ। आदिवासी बस्तर आर्ट के बेल वेल मेटल प्रभाव एवं अपने कलात्मक नक्काशियों के कारण इस कंक्रीट के स्थाई गेट का सौंदर्य देखते ही बनता है जिसका तकनीकी पक्ष उनकी टीम के निर्देशक पूर्णानंद देवांगन ने किया हैं।
स्थानीय निवासियों का मानना है कि जिस तरह से दिल्ली इंडिया गेट के नाम से जाना जाता है वैसे ही सुरजकुंड अब छत्तीसगढ़ गेट के नाम से जाना जायेगा। इस मुख्य गेट में पहुंचने से पहले ही राजकपूर के पुरानी फिल्मों की तरह सजे-धजे गाड़ा बैला का कारवां और आठ-दस फीट ऊंचे भंडाधारी अजीब मानव आकृतियां आपको किसी दुसरी दुनिया में पहुंच जाने का एहसास करा देंगी जो इस मेले का सबसे प्रमुख आकर्षण है। 800 फीट लंबी सड़क के किनारे इन कलाकारों ने किसी कुशल चितेरे की तरह पूरे गांव की जीती-जागती तस्वीर उकेर डाली है। मंड़ई-मेला-जंवारा का यह दृश्य धान की कटाई के बाद जनवरी-फरवरी का ही है जब गांव-गांव में खुशियों का यह त्यौहार मनाया जाता है। ग्राम देवता की पूजा करने सभी धर्म के लोग एकत्रित होते है और बैगा, भंडाधारी देवता व गाजा बाजा सहित परिक्रमा करते हैं। ग्रामीण महिलाएं उनके रास्ते में घड़ों सेपानी डालकर साष्टांग प्रणाम करती है। मान्यता है कि इन देवों के चरण पडऩे से मन्नतें पूरी होती है और घर परिवार के कष्ट दूर होते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य नेे अपने यहां पर्यटन को बढ़ावा देने में वहां की कला एवं संस्कृति का सौंदर्यमय विशद वर्णन किया है। परिसर के अंदर आपको सुवा नृत्य करती महिलाएं मिल जायेगी तो लकड़ी पर चढ़कर गेंड़ी नृत्य करते युवा, कहीं ढोल नगाड़े बजाते आदिवासी तो कहीं बस्तर आर्ट की बड़ी-बड़ी प्रतिकृतियां। गोबर से लिपी हुई दीवारों पर लोकशैली में आदिवासी भित्तीचित्रण भी मेला की सुंदरता को बढ़ा रहे हैं। इस राज्य के लिये यह भी गौरव की बात है। इन कलाकार भाइयों ने छत्तीसगढ़ की पुरातात्विक विरासत को भी बड़े तरीके से संवारा है जिसमें सिरपुर मंदिर की 20 फीट ऊंची प्रतिकृति उल्लेखनीय है। छठी शताब्दी का यह ईटों से बना मंदिर आज भी वहां विद्यमान है। तत्कालीन समय में अविभाजित भारत में बौद्धों का यह प्रमुख आस्था का केन्द्र था जिसकी प्रसिद्धि सुनकर चीनी यात्री व्हेनसांग भी यहां आये थे। बिलासपुर के पास ताला की रूद्रशिव प्रतिमा तो विश्व में सर्वथा अनुठी कृति है जिसके अंग-अंग को विभिन्न जीव-जंतुओं के रूप में दर्शाया गया है। इस पाषाण प्रतिमा के बारे में कहावत है कि यहां तांत्रिक अनुष्ठान एवं सिद्धि प्राप्त की जाती थी। बस्तर के बारसूर की गणेश प्रतिभा भी दर्शनीय बन पड़ी है। इन विलुप्त होती संस्कृति एवं पुरातात्विक महत्व के प्रदर्शन से इस बार का मेला अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के रूप में सामने आ रहा है।
देवांगन बंधु इन मूर्तिकारों में बड़ा अंकुश देवांगन स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के भिसाई स्टील प्लांट में कर्मचारी हैं तथा अपनी कला से उन्होंने पूरे भिलाई शहर को संवार डाला है। दिल्ली राजहरा नगरी में उनके द्वारा बनाये छ: मंजिली इमारत जितने भव्य कृष्ण-अर्जुन लौहरथ को इस वर्ष ‘लिम्का बुक ऑफ द वल्र्ड रिकार्ड-2014Ó के प्रथम पृष्ठ में स्थान दिया गया है। दुनिया की सबसे छोटी मूर्तियां तथा चावल के दानों पर पेंटिंग के लिए उन्हें पहले ही लिम्का रिकार्ड का अवार्ड प्राप्त हुआ जिसकी देशभर में 500 से ज्यादा सफल प्रदर्शनी कर सात समंदर पार इंग्लैंड में भी अपनी कला का डंका बजा चुके हैं।
इसी तरह उनके अनुज अशोक देवांगन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे छत्तीसगढ़ में दुर्ग के कर्मचारी हैं और अपनी कलाकृतियों से रेलवे के अनेक विभागों का सौंदर्यीकरण कर चुके हैं। हाल ही रेलवे के कचरे से उन्होंने राजधानी रायपुर में 40 फीट लंबी गेट वे ऑफ इंडिया की प्रतिकृति बनाई है जोकि चर्चित कलाकृति है। सरल और सहज व्यक्त्तिव के धनी दोनों भाइयों की कला को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने उन्हें छुट्टी पर लिया है। दोनों कलाकारों ने छत्तीसगढ़ शासन तथा अपने विभाग के अधिकारियों का आभार माना है जिससे उन्हें अपनी कला दिखाने का मौका मिला।