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एक खूबसूरत त्यौहार है…#छठ महापर्व

“कांच ही बांस के बहंगियां….

यह गाना, केवल एक गाना मात्र नहीं है!
यह आदिकाल के मगध साम्राज्य से लेकर वर्तमान काल तक के बिहारियों का इमोशन है! भावना है! प्रेम है! प्रेम अपनी प्रकृति के प्रति! अपने ईश के प्रति! अपने संस्कारों के प्रति और संसार के एकमात्र सबसे प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव के प्रति!
कभी नवम्बर के महीने में, छठ के समय में बिहार आने वाली बसों और ट्रेनों की ओर देखिएगा! देश विदेश में पढ़ाई और काम कर रहे सारे बिहारी जिस उत्साह से छठपूजा में शामिल होने अपने अपने गांव घर पहुँच रहे होते हैं, उन्हें देखकर लगता है कि बस इसी उत्साह के कारण, इसी ऊर्जा के कारण सनातन कभी मरा नहीं और ना ही मरेगा!
उन गाड़ियों में लोग नहीं, न जाने कितनी माओं के लाल, न जाने कितने पिताओं की उम्मीदें और न जाने कितनी सुहागिनों के सिंदूर अपने घर लौट रहे होते हैं!
कभी छठ के समय में बिहार आइए और महसूस कीजिए हर सुबह खेत की जुताई कर रहे ट्रैक्टरों में बजते गीत भजन…
“उगा हो सुरुज देव अरघि के भइल बेर…” वाले गाने को! यकीन मानिए, मन उसी रँग में रँग जाएगा!
छठ पूजा केवल पूजा नहीं है! केवल एक पर्व मात्र नहीं है! यह सनातनी आस्था का प्राण बिंदु है!
छठी माई कौन हैं? उनका इतिहास क्या है.. हमारी बहुत सी माताएं बहनें भले न जानती हों, पर उनका विश्वास इतना अटूट है, इतना मजबूत है, कि एक बार इस त्योहार को अंधविश्वास या ढकोसला बोलकर देखिए, उसी वक़्त गरिया गरियाकर हालत पतली कर देंगी!
पिता और पति की कमाई पर, एयर कंडीशन कमरों में बैठकर नारी सशक्तीकरण की बात करने वाली लेफ्ट विंग की लेखिकाओं को आकर छठ के घाट पर देखना चाहिए कि जब मुसहर टोली की व्रती माताएं बबुआन टोली की माताओं और बहनों के साथ बैठकर सुर से सुर मिलाकर गीत गाती हैं, तो वहां असली नारी सशक्तीकरण होता है!
उन्हें देखना चाहिए कि जब गांव का राजा भी अर्घ्य के बाद सबसे निम्न जाति की स्त्री के पांव छूकर टीका लगवाता है और उनके दिए प्रसाद को खाता है, तब वहां से सारा जातिवाद छू मंतर हो जाता है!
छठ के घाट पर कोई बड़ा-छोटा, राजा-रंक या अमीर-गरीब नहीं होता! वहां सभी केवल छठी
मइया के बेटे बेटियां होते हैं।
यह पर्व इतना सुंदर क्यों है? किसी सबसे गरीब बिहारी से पूछकर देखिएगा! छठ के दिन वह गरीब भी सबसे ज्यादा अमीर हो जाता है! छठ के दिन किसी व्रती का दउरा खाली नहीं रहता! लोग खाली रहने ही नहीं देते!
किसी को नारियल कम पड़ रहे हों, तो एक नहीं, दो नहीं, सैकड़ों हाथ उसे नारियल देने को उठ जाते हैं! किसी के पास प्रसाद बनाने का सामान नहीं है, यह पता चलते ही सबके सहयोग से इतना सामान जमा हो जाता है, जितना उसने सोचा भी नहीं होगा।
मोहल्ले में सबसे कर्कश बोलने वाली काकी, जिनकी किसी से नहीं बनती, जब छठ की कोसी भरती हुई गीत गाती हैं, तो यह दृश्य देखकर खुशी, गर्व और आश्चर्य एक साथ होते हैं!
व्रती स्त्रियों में छठी मइया के दर्शन होते हैं!
उनकी पियरी साड़ी और नाक से लेकर माथे तक लगे सिंदूर की चमक इतनी तीव्र होती है, कि सारा अधर्म, सारी कुंठाएं और सारे विषाद उस चमक से चौंधियाकर दम तोड़ देते हैं!
रात को घाट पर, गन्ने की छत्र बनाकर, मिट्टी के हाथी के आकार वाले बर्तन में बने दीयों में, जब एक साथ रौशनी प्रवाहित होती है तो सारा घाट जगमगा जाता है और उस समय वह चमक केवल दियों की नहीं होती, वह चमक धर्म की चमक होती है! सनातन की चमक होती है! भोर होते ही कमर तक पानी में अर्घ्य का सूप लेकर खड़ी माताओं को देखकर गर्व से सीना फूल उठता है! मन भाव विभोर हो जाता है और उस वक़्त लगता है कि इसी शक्ति ने, इसी आस्था और विश्वास ने देश बचा रखा है! धर्म बचा रखा है! सनातन बचा रखा है!
इसी पर्व ने सिखाया है कि न केवल उगते, बल्कि डूबते सूर्य को भी प्रणाम करना हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा है!
…इसलिए यह पर्व खूबसूरत भी है…


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