दो घूंट पानी पिलाने में नाकामयाब नगर निगम फरीदाबाद के बूते में नहीं स्मार्ट सिटी बनाना
महेश गुप्ता
फरीदाबाद,5 मार्च: दिल, दिमाग, दया से लबरेज इस शहर को किसी का श्राप लगा है अथवा फिर किसी का षडयंत्र कि एनसीआर में सबसे बेहतर कनेक्टिविटी संभावनाएं होने के बावजूद यह शहर आज तक उबर नहीं सका।
दाढ़ी वाले नेताजी की फुल कृपा के चलते शहर किसी प्रकार पहले 98 स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल हो गया लेकिन अगली परीक्षा में ही फेल होने से पहले 20 शहरों की दौड़ से बाहर हो गया। लेकिन बड़े सरकार के रहम के कारण एक और मौका इस शहर को मिला है कि यह स्मार्ट होने का तमगा पा ले। हालांकि एक हजार करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट मिलने के बाद भी शहर के स्मार्ट होने में हमें संदेह है।
हमारी आशंकाओं का पहला कारण है इसकी नोडल एजेंसी नगर निगम फरीदाबाद का होना। आइये पहले नगर निगम को ही जान लें।
हर साल नगर निगम फरीदाबाद 1200-1400 करोड़ रुपयों का नकली बजट बनाता है और बड़ी सफाई से इस बजट में कर्ज की राशि को भी कमाई में दिखाता है। जिस पर पढ़े लिखे अधिकारी, जनप्रतिनिधि और मीडिया बहुत कुछ बोलते नहीं दिखते। वह जानते हैं कि विकास परियोजनाओं से ज्यादा पैसा अवैध निर्माण से आ जाता है। हद है कि निगम अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के लिए कमाने में सक्षम नहीं है और हर काम के लिए कटोरा लिए कभी राज्य सरकार तो कभी लोनिंग एजेंसियों के दरवाजे खड़ा रहता है।
गलती से यदि कोई अधिकारी अपने मातहतों से काम लेने की सोचे तो वह यूनियनों को शू कह देता है। जिससे किसी प्रकार चल रहा काम भी रामभरोसे हो जाता है। नतीजा अधिकारी डरा हुआ रहता है।
फुल टाइम नगर निगम आयुक्त कभी कभी मिलता है और फुल टाइम संयुक्त आयुक्त एनआईटी को कब मिला था, और वह कितने समय इस पद पर रहा, यह गिनने के लिए उंगलियां कम पड़ जाएंगी। इस बड़े शहर को अधिकारी पार्ट टाइम ही मिलते हैं।
नगर निगम अजीब विभाग है जहां नालों को साफ करने का काम पढ़े लिखे क्वालिफाइड इंजीनियर करते हैं और नाला साफ करने वाले कर्मचारी नेताओं व अधिकारियों के घरों पर चाय के बर्तन साफ करते हैं।
अंगूठा टेक आदमी नेतृत्व प्रदान करता है और पढ़े लिखे आदमी को कोई काम न देकर किनारे बैठाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। आवाज उठाने वाले को फाइल साफ करने के लिए बैठा दिया जाता है।
पूरे देश में शायद नगर निगम फरीदाबाद ही अनोखा निगम होगा जो 14 लाख की जनसंख्या के बावजूद एक भी सार्वजनिक नल नहीं लगा पाता है, जिससे कि लोग अपने हलक को तर कर सके।
नियमित नौकरी पर घोटालों के जनक रहने वाले को ठेके पर रख लिया जाता है। विरोध करने वालों को खुड्डे लगा दिया जाता है।
अब आते हैं आज की बात पर।
शहर को एक बार फिर स्मार्ट बनाने की कवायद तेज हुई है तो ओरेंज बत्ती वाली विधायक ने अतिरिक्त कार्यभार वाले निगमायुक्त के साथ मिलकर जनमत संग्रह करना शुरू किया। जिसका लुआब यह था कि यदि बड़खल झील को फिर से गुलजार करने का दावा किया जाए तो शहर को स्मार्ट सिटी का तमगा मिल सकता है। शहर का कौन रहबासी यह नहीं चाहेगा कि उसका शहर विकास करे।
लेकिन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की टीम ने बड़ी रोचक फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें बताया गया है कि बड़खल झील में बड़ी बड़ी दरारें बन गई हैं जिनसे पानी नीचे चला जाता है और ऊपर नहीं टिकता है। यह रिपोर्ट तो पांच साल पहले तत्कालीन डीसी प्रवीण कुमार ही बनवा गए थे, साहब।
दावे हैं कि बड़खल झील में नालियों से निकला पानी भर देंगे, जिसे अभी तक बादशाहपुर में बने एसटीपी प्लांट में भेजा जाता है। जिससे आसपास के इलाकों में अंडर ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ जाएगा और शहर फिर से हरा भरा हो जाएगा। लेकिन जब इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों से पूछा गया कि कितना फुट पानी बढ़ेगा और कितने इलाके में तो उन्होंने कहा करीब 30 हेक्टयर वर्ग क्षेत्र में करीब छह फुट पानी लेवल बढ़ जाएगा। बाद में पता चला कि यह क्षेत्रफल तो झील का है। तो झील के गुलजार होने से इलाके का वाटर लेवल नहीं बढ़ेगा, साहब।
और फिर जनता को बेवकूफ बना रहे हो या केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को। क्योंकि हम जानते हैं कि बड़खल झील को दोबारा जिंदा करना तो सीएम एनाउंसमेंट का प्रमुख हिस्सा है। फिर आप स्मार्ट सिटी के लिए वाकई स्मार्ट काम क्यों नहीं कर रहे, साहब।
ऐसा काम करो कि जिससे यहां के लोगों का स्तर स्मार्ट हो, उन्हें स्मार्ट सुविधाएं मिलें और वह भी अपने कर्त्तव्यों को स्मार्ट तरीके से निबाहने के लिए तैयार हों। लेकिन इसकी शुरुआत ऊपर से नीचे की ओर होगी, साहब।
सूत्रों का कहना है कि बड़खल रिवाइवल में अधिकांश कार्य टूरिज्म और सिंचाई विभाग के हाथ रहने से नगर निगम के ही अधिकारी इसे जिंदा नहीं होने देना चाहेंगे। आखिर कौन भ्रष्ट अधिकारी चाहेगा कि काम वह करे, जिम्मेदारी उसकी और माल कोई और खाए या माफ करना काम करने के बावजूद मलाई न मिले तो कौन काम करेगा।