Metro Plus News
फरीदाबादहरियाणा

सोशल मीडिया पर पोस्ट करने पर अब नहीं होगी गिरफ्तारी, कोर्ट ने की धारा 66ए रद्द

मैट्रो प्लस
नई दिल्ली/फरीदाबाद, 10 अगस्त (महेश गुप्ता): सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे अंसवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने यह अह्म फैसला सुनाते हुए कहा कि आईटी एक्ट की यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए का उल्लंघन है, जोकि भारत के हर नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। कोर्ट ने कहा, धारा 66ए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का हनन है।
अदालत के आदेश के बाद अब फेसबुक, ट्विटर, लिंकड इन, व्हाट्स एप सरीखे सोशल मीडिया माध्यमों पर कोई भी पोस्ट डालने पर किसी की गिरफ्तारी नहीं होगी। इससे पहले धारा 66ए के तहत पुलिस को ये अधिकार था कि वो इंटरनेट पर लिखी गई बात के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर सकती थी। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में आईटी एक्ट की धारा 66ए को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने इस फैसले को बड़ी जीत बताते हुए कहा, सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कायम रखा है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, इसलिए यह असंवैधानिक है। याचिकाओं में ये मांग भी की गई है कि अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े किसी भी मामले में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई, 2013 को एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले व्यक्ति को बिना किसी सीनियर अधिकारी जैसे कि आईजी या डीसीपी की अनुमति के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
दूसरी तरफ सरकार की दलील थी कि इस कानून के दुरूपयोग को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। इसे पूरी तरह निरस्त कर देना सही नहीं होगा। सरकार के मुताबिक इंटरनेट की दुनिया में तमाम ऐसे तत्व मौजूद हैं जो समाज के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस को शरारती तत्वों की गिरफ्तारी का अधिकार होना चाहिए।
अनुच्छेद 66ए के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फोन से भेजना दंडनीय अपराध है। सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया है कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है।
इस बहस के बीच सरकार ने अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा। सरकार ने अदालत से कहा कि भारत में साइबर क्षेत्र पर कुछ पाबंदियां होनी ज़रूरी हैं क्योंकि सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।


Related posts

गरिमा मित्तल फरीदाबाद की हुडा प्रशासक बनी

Metro Plus

भाजपा कार्यकर्ताओं ने सेवा ही संगठन कार्यक्रम के तहत विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण के लिए कसी कमर: गोपाल शर्मा

Metro Plus

DC Office में अगले 6 महीने में E-Office प्रणाली लागू होगी: यशपाल यादव

Metro Plus