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नोटबंदी और दर्शकों की कमी ने उड़ाई 31वें सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में रावण बने बहरूपिये के चेहरे की हंसी

मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की विशेष रिपोर्ट

सूरजकुंड/फरीदाबाद, 8 फरवरी: भेंट चढ़ाओगे तभी तो जाओगे। बार-बार ये शब्द इस्तेमाल करने के बावजूद रावण का आकर्षक रोल निभा मेले में लोगों का मनोरंजन कर रहे बहरूपिए अब्दुल अमीद की इन बातों का असर उस आम जनता पर बिल्कुल भी पड़ता नजर नहीं आ रहा है जोकि अपने बच्चों व परिजनों के साथ अपनी फोटो खिंचवा कर सेल्फी भी ले रहे हैं। शायद यही कारण है कि पिछले 29 सालों से मेले में रावण का रोल निभाकर जनता को हंसाने का काम कर रहे नंगाड़ा पार्टी के बहरूपिए अब्दुल अमीद इस बार के मेले में अपने साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा रखने वाले अपने चहेतों से भेंट ना मिल पाने के कारण काफी दु:खी दिखाई दे रहे थे।
मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले खानपुर (दिल्ली)निवासी बहरूपिए कलाकार अब्दुल अमीद का कहना है कि वे सूरजकुंड के अलावा कलाकार के रूप में दुबई, हॉलैंड तथा स्विटजरलैंड में भी जा कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन चुके हैं। और जहां तक इस बार के सूरजकुंड मेले की बात है तो उन्हें इस बार का मेला किसी भी तरह से रास नहीं आ रहा है। जनता की कमी के चलते उन्हें मेला पूरी तरह से फीका लग रहा है। मेले में आने वाले लोगों में भी उत्साह दिखाई ही नहीं दे रहा है। नोटबंदी और दर्शकों की कमी इसका उन्होंने मुख्य कारण बताया। बकौल अब्दुल मेले में पहले बहुत भीड़ होती थी लेकिन इस बार करीब 50 प्रतिशत मेले पर फर्क पड़ा है।
ऐसा पहली बार हो रहा है कि लुप्त होती जा रही हस्तशिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए लगाए गए हरियाणा स्वर्ण जयंती 31वें सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में आने वाले हस्तशिल्पीयों के साथ-साथ अब कलाकारों का रूझान भी इस बार के मेले की घटती रौनक को देखते हुए खत्म सा हो चला है। इसी से अंर्तराष्ट्रीय स्तर के कहे जाने वाले इस मेले की सफलता-असफलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इसके अलावा अगर हम बात करें मेला परिसर में बच्चों के मनोंरजन हेतु लगाए गए झुलों की तो मेले में ज्यादातर झूले भी खाली ही चल रहे हैं। एक झुले वाले ने बताया कि इस बार मेले में पहले की अपेक्षा काफी कम पब्लिक आ रही है जिसके चलते उन्हें अंदेशा लग रहा है कि कमाई तो दूर कहीं उन्हें मेले में घाटा ना उठाना पड़ जाए।
मेले में दर्शकों की संख्या कम होने का कारण जहां नोटबंदी बताया जा रहा हैं वहीं इस बार मेला प्राधिकरण द्वारा मेला टिकटों के बढ़ाए गए दाम भी इसका एक मुख्य कारण बताया जा रहा हैं जोकि दर्शकों की जेब पर भारी पड़ रही है। ध्यान रहे कि इस बार मेले की टिकटों के दाम 100 व 150 रुपए कर दिए गए है जिसे दर्शक नोटबंदी के इस माहौल में पचा नहीं पा रहे हैं।
इसी प्रकार से मेले में खानपान का स्टॉल लेने वाले दुकानदार भी परेशान दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि मेले में लोगों की संख्या कम है। बिक्री भी उम्मीद अनुसार नहीं हो रही। उनके अनुसार मेले में इस बार पचास प्रतिशत तक की कमी उन्हें दिखाई दे रही है। झारखंड के तमाम खान-पान वाले दुकानदार भी मेले की गायब होती रौनक से रूआंसे से होते दिखाई दे रहे हैं। चौकी धानी पर भी खाने की पर्ची वाले हाथ पर हाथ धरे बैठे नजर आ रहे थे।


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