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शिक्षाविद्व कुलदीप सिंह का मानना है कि लोगों में आज ऊपरी मुस्कान और दिखावे का चलन बढ़ रहा है

मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 3 अक्टूबर: आज शहरों में लोगों की जीवनशैली दिन-प्रतिदिन अति आधुनिक होती जा रही है। अपने को आधुनिकता का प्रतीक दिखाने के चक्कर में लोग अपनी खुशियों के पैमाने और अर्थ दोनों को ही बदलते जा रहे हैं। आजकल लोगों की जीवनशैली नए तरीके के विकास की कशमकश और भागमभाग से त्रस्त दिख रही है। लोगों में केवल अपनी ऊपरी मुस्कान और दिखावे का चलन बढ़ रहा है। अंदर की वास्तविक खुशी तो लगता है जैसे कि गायब ही हो रही है। आधुनिक हो रहे जीवन में यदि आराम बढ़ता है तो कोई विवाद नहीं हो सकता, पर आज की आधुनिकता की कीमत परिवार के तनावमुक्त स्वस्थ वातावरण की बलि देकर नहीं चुकाई जा सकती। शायद हमारे बच्चे पहले ही ऐसे वातावरण से वंचित होते जा रहे हैं और हमारे वो संबंध जो हमें आपस में बांधे रखते थे, बड़ी तेजी से समाप्ति की ओर जा रहे हैं।
होर्मटन ग्रामर स्कूल के एमडी सरदार कुलदीप सिंंह का  मानना है कि आज हमें अपने निजी व्यवहार और जीवन शैली में आए बदलाव पर अत्यधिक विचार करने की विशेष आवश्यकता है। इस काम में हमारी परम्पराओं की संस्कृति, हमारी सहायता अच्छी तरह कर सकती है। अपने परिवारों के बीच प्रेम और सम्मान का वातावरण तथा परस्पर संभावना के निर्माण के लिए ऐसे ही कुछ विचारों पर हम ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं जो हमारी मदद हमेशा करते हैं।
सेवा:
यह एक ऐसा संबोधन है जिसमें अपने कर्तव्य बोध के साथ समर्पण भी जुड़ा है। सरदार कुलदीप सिंह का मानना है कि व्यक्तिगत रूप से मेरा अनुभव यही रहा है कि घर की नौकरानी द्वारा दी गई एक कप चाय और घर के पारिवारिक सदस्यों पत्नी, पुत्री और पुत्रवधू द्वारा दी गई एक कप चाय में मिठास का अंतर तो अनुभव हो ही जाता है। पहले वाली चाय में शायद केवल कर्तव्यबोध है जबकि दूसरी में कर्तव्य के साथ अनुराग भी बांध लेता है। यही भावना ही धीरे-धीरे आगे चलकर प्रेम और सम्मान में बदल जाती है।
परिवार कक्ष:
हमारे घर में एक तो जगह ऐसी जरूर है, जहां घर के सभी सदस्य मिल बैठकर टीवी देखें और आपसे अपने अनुभव और विचार सांझा करें। आजकल तो बड़े सुन्दर-सुन्दर ड्राइंग रूम होते हैं, जो घरों में आने वाले मेहमानों का ही इंतजार करते हैं। परन्तु वहां घर-परिवार के लोग भी तो कभी-कभार ही दिखाई पड़ते हैं। वैसे मोबाईल फोन पर व्यक्तिगत बातें करने के लिए बड़ा सुविधाजनक स्थान हेाता है। आजकल तो ड्राइंग रूम में साथ-साथ बैठकर बात करने के अवसर तो बहुत कम ही मिलते हैं। हमको, आपको, आजकल तो हर कोई अपने बैडरूम में टीवी से अपनी आंखें चिपकाए दिखता है। इन आधुनिक सुविधाओं ने तो खुशी के नाम पर हमारी पारिवारिक सुख शांति और सह अस्तित्व की भावना को ही ग्रहण लगा दिया है। अगर हम सब साथ बैठे होते तो हो सकता था कि सभी मिलकर किसी एक टीवी प्रोग्राम को देखने पर एकमत हो जाते। यह भी हो सकता था कि अपनी-अपनी पसंद का विवाद होने की स्थिति में समाधान के लिए घर की मुखिया की बात को अंतिम निर्णय मानकर सब साथ होते। हमारे अलग-अलग शयन कक्षों ने तो हमें इस हद तक बांट दिया है कि हमारे अंदर से सहनशीलता और दूसरे विचारों से सांमजस्य बनाने की क्षमता ही समाप्त होती जा रही है।
बैंक खाते:
घर परिवार सभी धन कमाने वाले सदस्यों ने अपने पूर्णत: व्यक्तिगत खाते खुलवा रखे हैं और उनमें आपस में समय पर खर्च न करने की होड़ सी लगी होती है। कोई किसी पर आश्रित नहीं है और यह उनकी पूर्ण स्वतन्त्रता है। इस पूर्ण स्वतन्त्रता ने घरों के अंदर की एकता को छिन्न-भिन्न कर दिया है। वास्तव में, आज तो नगर, घर है नहीं, ये तो सभी मकान है, फ्लैट या पेइंग गेस्ट हॉस्टल जैसी जगहें हैं। आजकल के 20-30 साल के नौजवानों की घर की समझ को तो शायद आधुनिकता की नजर लग गई है। उन्हें पुरानी घर परम्परा के बारे में तो किसी ने बताया सिखाया नहीं और न ही उन्हें कुछ वैसा शहर में देखने को मिला। उनके लिए तो अपनी स्वतन्त्रता और निजता ही अधिक मायने रखती है। उनकी दुनिया बस उनके अपने दोस्तों तक है, बाकी सारे सबंध तो महत्वहीन या गौण हैं।


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