मैट्रो प्लस से नेहा खन्ना की रिपोर्ट
फरीदाबाद,12अप्रैल: केंद्र सरकार ने वीरवार को अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम 1989 में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया। जिस दौरान केंद्र ने कोर्ट से कहा कि अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून से संबंधित उसके फैसले से देश में दुर्भावनाए क्रोध एवं असहजता का भाव पैदा हुआ है। केंद्र की ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष लिखित तौर पर रखे गये पक्ष में एटर्नी जनरल ने इसे बहुत ही संवेदनशील मसला बताते हुए कहा कि न्यायालय के फैसले से देश में क्षोभए क्रोध और उत्तेजना का माहौल बना है साथ ही आपसी सौहार्द का वातावरण भी दूषित हुआ है। वेणुगोपाल ने कहा कि कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के अपने-अपने अधिकार सन्निहित हैं। और इनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। सरकार के अनुसार न्यायालय के फैसले से कानून कमजोर हुआ है। और इसकी वजह से देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने इन परिप्रेक्ष्यों में न्यायालय से 20 मार्च के फैसले पर पुनर्विचार करने तथा अपने दिशा निर्देशों को वापस लेने का अनुरोध किया है। गौरतलब है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से सरकार ने इस मामले में याचिका दायर करके शीर्ष अदालत से अपने गत 20 मार्च के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है। सरकार का मानना है कि एससी और एसटी के खिलाफ कथित अत्याचार के मामलों में स्वत गिरफ्तारी और मुकदमे के पंजीकरण पर प्रतिबंध के शीर्ष अदालत के आदेश से 1989 का यह कानून विहीन हो जायेगी। मंत्रालय की यह भी दलील है कि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया आदेश से लोगों में संबंधित कानून का भय कम होगा और एससी एसटी समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी। न्यायालय ने माना है कि एससी एसटी अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है। शीर्ष अदालत के इस फैसले पर गत दो अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया गया था जिससे विभिन्न राज्यों में सामान्य जन जीवन अस्त-व्यस्त रहा। कई स्थानों पर आगजनी घटनाएं भी हुई।