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FFRC की कार्यशैली से दु:खी प्राईवेट स्कूल संचालक, नहीं बनवा पा रही है पेरेंट्स-स्कूल संचालकों में सामंजस्य!

मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की खास रिपोर्ट
फरीदाबाद, 18 दिसम्बर:
प्राईवेट स्कूल संचालकों, फंड्स रेगुलेटरी कमेटी (FFRC) और हरियाणा अभिभावक एकता मंच के बीच रस्साकसी का खेल चल रहा है। इन सभी की ही तरफ से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं। एक तरफ जहां अभिभावक एकता मंच FFRC पर प्राईवेट स्कूल संचालकों से मिलीभगत का आरोप लगा रहा है, वहीं दूसरी तरफ प्राईवेट स्कूल संचालक भी FFRC की कार्यशैली से खासे दु:खी बताए जाते हैं।
कारण, FFRC कार्यालय में बैठा वो PGT प्राध्यापक है जिसको इस FFRC कार्यालय में शिक्षा विभाग से डेपूटेशन पर से लाकर मिशन कॉर्डिनेटर के तौर पर बैठाया हुआ है। बताया जा रहा है कि वैसे तो इस मिशन कार्डिनेटर का काम पेरेंट्स और स्कूल संचालकों के बीच फीस आदि की समस्याओं को सुलझाकर दोनों में सामंजस्य स्थापित करवाना है। लेकिन वास्तव में धरातल पर ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं देता।
चंद स्कूल संचालकों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि FFRC कार्यालय में यदि कोई पेरेंट्स ट्रांसफर सर्टिफिकेट यानि TC मांगने पर स्कूल प्रबंधक द्वारा स्कूल फीस मांगने की शिकायत करता है तो उक्त मिशन कॉडिनेटर बजाए फीस दिलवाने के स्कूल प्रबंधकों से उनकी ऑडिट रिपोर्ट मांगकर उसकी ऑडिट करने की बात कहता है, जोकि सरासर गलत है। इनका कहना है कि जब शिकायत फीस मांगने की है तो फिर इसमें ऑडिट रिपोर्ट कहां से बीच में आ गई।
वहीं दूसरी तरफ मिशन कॉडिनेटर हंसराज का इस मामले में कहना था कि TC के मामले/शिकायत तो जिला शिक्षा विभाग देखता हैं, उनकी FFRC तो फीस का मामला देखती है। गलत फीस मांगे जाने की एवज में वो प्रारंभिक जांच कीती है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या पेरेंट्स द्वारा TC मांगने पर फीस मांगने की शिकायत आती है तो क्या आप उस पर ऑडिट रिपोर्ट मांग सकते हो तो वो उसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। साथ ही उन्होंने ये तो माना कि FFRC लाटरी/ड्रा के आधार पर प्रत्येक वर्ष पांच प्रतिशत स्कूलों का ऑडिट कर सकती है।
वहीं हरियाणा अभिभावक एकता मंच के महासचिव कैलाश शर्मा के मुताबिक शिक्षा का व्यवसायिकरण रोकने के लिए नियमानुसार FFRC साल में एक बार कुल पांच प्रतिशत स्कूलों का ही ऑडिट कर सकती है और उन पांच प्रतिशत स्कूलों का चयन/सिलेक्शन भी लाटरी सिस्टम से होता है। या फिर किसी सरकारी आदेश/शिकायत पर FFRC किसी विशेष स्कूल का ऑडिट कर सकती है। बकौल कैलाश शर्मा FFRC के चेयरमैन ने अभी तक चंद ब्रांडेड स्कूलों को ऑडिट के लिए नोटिस तो दिए हैं लेकिन उन पर कार्यवाही कोई नहीं की। कैलाश शर्मा के मुताबिक FFRC कम डिवीजनल कमिश्रर अपनी पॉवर्स का इस्तेमाल करते हुए शिक्षा विभाग को दोषी स्कूल की मान्यता रद्द करने और NOC को कैंसिल करने के लिए रिक्मेंड कर सकता है, लेकिन अभी तक इनके द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया।
ध्यान रहे कि हरियाणा शिक्षा अधिनियम-2003 के तहत नियम 158 के तहत फीस एंड फंड्स रेगुलेटरी कमेटी (FFRC) का गठन सन् 2014 में हुआ था और इसका चेयरमैन संबंधित डिविजनल कमिश्रर को बनाया गया था जबकि ADC और जिला शिक्षा अधिकारी को। इस FFRC का काम वास्तव में यह देखना है कि किसी स्कूल ने फार्म-6 में भरी फीस के बाद मिड सेशन में फीस तो नहीं बढ़ाई है और दाखिले के लिए पेरेंट्स से कोई कैपिटेशन फीस तो नहीं मांगी जा रही है। पेरेंट्स और स्कूल संचालकों के बीच आ रही इस प्रकार की समस्याओं को निराकरण करने के लिए ही इस कमेटी का गठन किया गया था। इसी के चलते इस FFRC कार्यालय में शिक्षा विभाग का एक प्राध्यापक भी मिशन कॉर्डिनेटर के रूप में यहां डेपुटेशन पर नियुक्त किया गया ताकि टेक्निकल तौर से शिक्षा विभाग से जुड़ा होने के चलते वह पेरेंट्स और स्कूल संचालकों में सामंजस्य बैठा सके।
वहीं अब हरियाणा अभिभावक एकता मंच द्वारा प्रधानमंत्री को ट्वीट के माध्यम से भेजी गई शिकायत पर पीएमओ ऑफिस के संज्ञान लेने पर जिस तरीके से हरियाणा सरकार ने फीस एंड फंड्स रेगुलेटरी कमेटी (एFFRC) फरीदाबाद की कार्यशैली की जांच एक HCS अधिकारी दिनेश सिंह यादव को सौंप दी है, उसनेे भी FFRC को शक के कटघरे में खड़ा कर दिया है।


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