मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की खास रिपोर्ट।
राजस्थान सहित पूरे देश में धुआं रहित तंबाकू का सेवन हेड नेक कैंसर का मुख्य कारण बनता जा रहा है। जिसके चलते प्रदेश में कैंसर रोगियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। दुनियाभर में आज 27 जुलाई को वल्र्ड हेड नेक कैंसर-डे मनाया जा रहा है। इसलिए इस दिन प्रदेश के ENT चिकित्सकों ने इस पर चिंता जाहिर कर युवाओं के साथ आमजन से इस तरह के तंबाकू व अन्य धूम्रपान वाले उत्पादों से दूर रहने की सलाह दी है।
सवाई मानसिंह चिकित्सालय जयपुर के कान, नाक, गला विभाग आचार्य डॉ० पवन सिंघल ने बताया कि कोरोना के दौरान ऐसे मामले बड़े है, क्योंकि इस दौरान अधिकतर लोग अपने घरों में ही रहे। अपना समय व्यतीत करने का साधन भी कुछ लोग ऐसे तंबाकू उत्पादों को बनाते है, इसलिए सिर एवं गले का कैंसर, मुंह, कंठनली, गले या नाक में इसका सबसे अधिक प्रभाव होता है।
डॉ० सिंघल ने बताया कि हेड एंड नेक कैंसर राजस्थान के साथ ही भारत में भी कैंसर का बड़ा स्रोत हैं। धुंआरहित तंबाकू के सेवन से 80 प्रतिशत तक हैड नेक कैंसर होता है जबकि इससे 50 प्रतिशत तक सभी तरह का कैंसर भी पूरे शरीर में होता है। इसमें मुंह, होठ, जीभ, गाल, दांत, तालू, गला, भोजन नली, पेट इत्यादि अंगों में होने वाला कैंसर शामिल है। उन्होंने बताया कि इस तरह के उत्पादों का सेवन करने से हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ता है। हैड नेक कैंसर महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में 3 से 4 गुणा तक अधिक हेता है। इसका सबसे बड़ा कारण युवाओं में स्मोकिंग, पान सुपारी व एल्कोहल का उपभोग है। उन्होंने बताया कि दो-तिहाई सिर एवं गला कैंसर का सीधा संबध चबाने वाला या अन्य प्रकार का तंबाकू अरेका अखरोट और शराब से हैं। दुर्भाग्यवश ये कारक कमजोर नीति या कार्यान्वयन या इसकी अनुपस्थिति के कारण स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है।
चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का उपभोग अधिक:-
डॉ० पवन सिंघल ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे-2017 के अनुसार राजस्थान में वर्तमान में 24.7 प्रतिशत लोग 5 में से 2 पुरूष, 10 में से 1 महिला यूजर किसी न किसी रूप में तंबाकू उत्पादों का उपभोग करते है जिसमें 13.2 प्रतिशत लोग धूम्रपान के रूप में तंबाकू का सेवन करते है। इनमें 22.0 प्रतिशत पुरूष, 3.7 प्रतिशत महिलांए शामिल है। यहां पर 14.1 प्रतिशत लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते है। जिसमें 22.0 प्रतिशत पुरूष व 5.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।
पारंपरिक रिवाज से भी सीधा संबंध:-
सुखम फाउंडेशन की ट्रस्टी कांता सेन ने बताया कि राजस्थान में पारंपरिक रूप से भी हमारे समाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है। बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर, जयपुर संभाग के झुंझुनू व शेखावाटी क्षेत्र हाड़ौती के कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, जोधपुर संभाग के मारवाड़ क्षेत्र जालौर, सिरोही, पाली सहित जैसलमेर, बाड़मेर का क्षेत्र में इसका प्रचलन विवाह, सगाई या अन्य खुशी के मौके के साथ-साथ निधन होने के बाद 12 दिन तक चलने वाली बैठक में भी इसका उपभोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि वक्त के साथ कुछ स्थानों पर बदलाव भी आया है। लेकिन अधिकतर स्थानों पर आज भी इसका उपभोग होता है जिस पर रोक लगानी चाहिए, ताकि समाज में एक सकारात्मक संदेश जा सके।
इस तरह करें बचाव:-
डॉ० सिंघल ने बताया कि जिस तरह से समय के साथ हमारी प्रकृति में बदलाव हो रहा है उसी तरह से इंसान की जीवनशैली भी तेज गति से बदल रही है। खराब लाइफ स्टाइल कम जागरूकता के अभाव में देश में तेजी से कैंसर रोगियों की संख्या बड़ी है। इसलिए इससे बचाव के लिए ये उपाय कर सकते हैं।
- इसलिए घरेलू उत्पादों का उपभोग करें।
- तंबाकू व अन्य चबाने वाले उत्पादों के साथ शराब या अन्य कोई भी नशे से दूर रहें।
- मुंह, गले और सिर में किसी तरह की परेशानी होने पर चिकित्सक से सलाह लें।
- अपनी दिनचर्या में सुबह की सैर को शामिल करें।
- भोजन में प्रोटीन वाले उत्पाद शामिल करें।
- मौसमी फलों का सेवन करें।
- ओरल कैंसर की नियमित स्क्रीनिंग
वल्र्ड हेड नेक कैंसर-डे की इस तरह हुई शुरूआत:-
इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ हैड नेक आनकोलाजी सेसायटी, (आईएफएचएनओएस) ने जुलाई 2014 में न्यूयार्क में 5वीं वल्र्ड कांग्रेस में वल्र्ड हैड नेक केंसर-डे मनाने की घोषणा की। यह दिन रोगियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं को बीमारी और हाल ही में उपचार की दिशा में हुई तरक्की के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच पर लाता है।