Metro Plus से Naveen Gupta की रिपोर्ट।
उत्तराखंड, 14 नवंबर: उत्तराखंड की पावन धरा पर बसा श्री बद्रीनाथ धाम जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निवास स्थल माना जाता है। यह धाम उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के नर-नारायण नामक दो पर्वतों पर स्थापित है।
धार्मिक मान्यता है कि महाभारत की रचना भी महर्षि वेदव्यास ने बद्रीनाथ धाम में की थी। हर साल बद्रीनाथ मंदिर में सबसे अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
कैसे पड़ा बद्रीनाथ मंदिर का नाम:-
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार ऐसा समय आया कि जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने जीवन में कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने हिमालय में जाकर तपस्या की। इस दौरान हिमालय में बर्फ गिरने लगी, जिससे विष्णु जी बर्फ से ढंक गए। इस स्थिति को धन की देवी मां लक्ष्मी से देखा नहीं गया, तो वह वृक्ष बनकर उसके नजदीक खड़ी हो गईं, जिसकी वजह से उनके ऊपर बर्फ पड़ने लगी। इसके बाद लक्ष्मी जी विष्णु जी को बारिश और बर्फ से बचाती रहीं। इसके पश्चात जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई, तो उन्होंने देखा कि मां लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई हैं। ऐसा देख उन्होंने कहा कि तुमने मेरे संग तपस्या की। इसी वजह से अब से इस धाम में मेरे संग तुम्हारी पूजा-अर्चना की जाएगी। साथ ही विष्णु जी ने कहा कि तुम्हारे बद्री यानी बदरी वृक्ष की वजह से इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा। इस मंदिर में श्रीहरि के रूप में बद्रीनारायण की पूजा-अर्चना होती है।
भगवान नारायण के द्वारा इस बद्रीनाथ धाम को योग सिद्ध भी कहा गया है। वहीं, द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान के एक रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा विराजमान है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित है।
हर साल शीतकाल में दुनियाभर में प्रसिद्ध इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और अगले 6 महीने के बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इस बार बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर (Badrinath Closing Date 2024) को प्रातः 9 बजकर 7 मिनट पर बंद होंगे। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत बुधवार 13 नवंबर से पंच पूजाएं शुरू हुई। श्री पंच पूजाओं के तहत पहले दिन भगवान गणेश की पूजा हुई जबकि शाम को इसी दिन भगवान गणेश के कपाट बंद हुए।
दूसरे दिन यानी आज बृहस्पतिवार, 14 नवंबर को आदि केदारेश्वर मंदिर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद होंगे। बदरीनाथ धाम कपाट बंद होने का शेड्यूल के मुताबिक, तीसरे दिन यानी शुक्रवार, 15 नवंबर को खडग-पुस्तक पूजन और वेद ऋचाओं का वाचन बंद हो जाएगा। चौथे दिन शनिवार, 16 नवंबर को मां लक्ष्मी जी को कढ़ाई भोग चढ़ाया जायेगा।
रविवार 17 नवंबर को रात 9 बजकर 7 मिनट पर श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाएंगे।
इसी क्रम में सोमवार यानी 18 नवंबर को श्री कुबेर जी, उद्धव जी, रावल जी सहित आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी शीतकालीन प्रवास पांडुकेश्वर और श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ को प्रस्थान करेंगे।
श्री उद्धव जी और श्री कुबेर जी शीतकाल में पांडुकेश्वर प्रवास करेंगे.
नृसिंह मंदिर में 19 से शुरू होगी पूजा:-
आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी सोमवार 18 नवंबर को पांडुकेश्वर प्रवास के बाद मंगलवार यानि 19 नवंबर को समारोह पूर्वक गद्दीस्थल श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंचेगी।
इसके बाद शीतकालीन प्रवास श्री पांडुकेश्वर और श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में शीतकालीन पूजाएं आयोजित होंगी।