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शहीदी दिवस पर भी अंधेरे में डूबा रहा माताजी गुजरी कौर और उनके साहिबजादों की करोड़ों की लागत से बनी प्रतिमाओं वाला बीके चौक! जिम्मेदार कौन?


Metro Plus से Naveen Gupta की Report
Faridabad, 26 दिसंबर:
वाहे गुरु दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह। सर्वप्रथम शहीदी दिवस में मैट्रो प्लस परिवार की ओर से सिख समुदाय को नमन।

अब बात करें मुद्दे की तो 20 से 28 दिसंबर तक शहीदी हफ्ता यानी शहीदी दिवस चल रहे हैं। पूरे देश में ये शहीदी दिवस मनाए जा रहे हैं। फरीदाबाद में भी इसी के चलते लगभग सभी गुरूद्वारे के आसपास की मार्किट रंग-बिरंगी लाइटों से सजी हुई है। लेकिन अगर हम बात करें फरीदाबाद का अति व्यस्ततम बीके चौक जिसका कि कुछ दिनों पहले ही माताजी चौक नाम रखने की घोषणा बडख़ल के विधायक धनेश अदलखा ने की थी, तो ये पूरे का पूरा चौक रात के समय अंधेरे में डूबा रहता है। संबंधित विभाग इस चौक पर शहीद गुरू तेग बहादुर जी की धर्मपत्नी और गुरू गोविंद सिंह की माताजी गुजरी कौर और उनके दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह आदि की करोड़ों रूपयों की आदमकद प्रतिमाएं लगाने के बाद इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है। जबकि इस चौक से सिख समुदाय की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं।

दादी-पोतों की कहानी सुनो हमारी जुबानी के तहत आज से करीब 320 वर्ष पूर्व जो इतिहास रच गया था। माताजी गुजरी कौर और उनके दोनों साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह का आज शहीदी दिवस है, उससे आज हमको थोड़ा-बहुत अवगत कराने का प्रयास करेंगे।

बता दें कि मात्र 7 साल के बाबा जोरावर सिंह और 5 साल के मासूम बाबा फतेह सिंह को 12 पोह यानि आज ही के दिन 26 दिसंबर, 1705 को दीवारों में जिंदा चिन दिया गया था। कारण था इनके द्वारा इस्लाम धर्म कबूल न करना। दादी माता गुजर कौर जी ने अपने हाथों से इन दोनों छोटे साहिबजादों को सुंदर दस्तार और कलगी से सजाए दूल्हे की तरह जुल्म के खिलाफ बेखौफ शहीद होने के लिए जालिमो के साथ भेज दिया था। जैसे ही जालिम हुकूमत ने दोनों छोटे साहबजादों को नींव में चिनना शुरू किया, वैसे ही दोनों ने गुरू नानक देव जी की बानी जपुजी साहिब का पाठ आरम्भ कर दिया।

इतिहास में ऐसा भी लिखा है कि इनको चिनते समय दीवार तीन बारी गिरी थी। कहते हैं कि जब नींव की दीवार छोटे भाई फतेह सिंह के सर तक पहुंची तो बड़े भाई ज़ोरवर सिंह की आंख से आंसू टपक गए। यह देख कर फतेह सिंह जी बोले गोबिंद के लाल होकर मौत से डर गए क्या? तो जवाब में जोरवर सिंह ने बोला आंसू इसलिए आ गए कि छोटे तुम हो ओर शाहदत का जाम तुम मेरे से पहले पियोगे जबकि मैं बड़ा हूं।

इतिहासकार लिखते ही कि दीवार पूरी चिन जाने के बाद फिर से वह पूरी तरह ढह गई। दोनों साहबजादे बेहोश थे और सांस चल रही थी। फिर सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान का हुकुम आया कि दोनों का सर धड़ से अलग कर दिया जाए इसके चलते पहले 7 वर्षीय बाबा जोरावर सिंह का सर कलम किया गया।

इतिहासकार लिखते ही कि सर धड़ से अलग होते ही बाबा जोरावर सिंह के तो प्राण निकल गए, पर 5 वर्षीय बाबा फतेह सिंह के प्राण कुछ समय बाद निकले क्योंकि जब सर धड़ से अलग हुआ तो उनके शरीर आदी घड़ी छटपटाता रहा। जब इन इन दोनों मासूमों की शहीदी की खबर माता गूजरी कौर जी को मिली तो उन्होंने ठंडे बुर्ज में अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि वो अपने साहिबजादों की मौत बर्दाश्त नहीं कर पाई।

ऐसी महान शहीदी, इतिहास में ना तो पहले किसी ने सुनी थी और ना आने वाली कई सदियों तक सुनने को मिल सकती है। सनातन धर्म और देश की रक्षा के तहत गुरू तेग बहादुर जी ने जो कुर्बानी दी थी उसको गुरु गोबिंद सिंह जी ने कायम रखा। अपना सारा वंश वार दिया यानि देश के लिए कुर्बान कर दिया।
वहीं से ये सिख समुदाय में ये कहावत कही गई कि
देश धर्म के वास्ते वार दिए सूत चार, चार मुवे तो क्या हुआ जीवत कई हज़ार।
अर्थात संतान धर्म और देश की रक्षा के लिए जो कुर्बानी दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी ने की, वह लासानी है।
ऐसी महान शहीदी दे कर गुरू गोबिंद सिंह जी ने उस वक्त के सोए, डरे और कमजोर समाज को जागरूक किया। इसलिए अपने-अपने परिवार मैं बैठकर बच्चे और बेटियों को इस कुर्बानी ओर इतिहास की जानकारी देकर आप उनको अपने इतिहास से जोडऩा चाहिए।

ऐसी महान शहीदीयों को मैट्रो प्लस परिवार की ओर से भी कोटि कोटि नमन………


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