गरीबी की वजह से जमानत या जुर्माना नहीं भर पाने वाले गरीब कैदी भी ले सकेंगे अब आजादी की खुली हवा में सांस: डॉ. सुमिता मिश्रा
जमानत या जुर्माना नहीं भर पाने वाले गरीब कैदियों की मदद के लिए संशोधित गाइडलाइंस और एसओपी लागू: डॉ. सुमिता मिश्रा
Metro Plus से Naveen Gupta की रिपोर्ट।
Chandigarh, 24 दिसंबर: पैसे ना होने की सूरत में जो गरीब कैदी अपनी जमानत नहीं करवा पाते या फिर जुर्माना नहीं भर पाते, उनके लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है। ऐसे मजबूर गरीब कैदी अब जेलों में या हिरासत में नहीं रह पाएंगे क्योंकि इसके लिए सरकार ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा की मानें तो राज्य में ‘गरीब कैदियों को सहायता’ योजना के लिए संशोधित गाइडलाइंस और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर जारी किए गए हैं। इन विस्तृत गाइडलाइंस का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर कैदियों को वित्तीय सहायता देना है, जिनकी आजादी सिर्फ कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने का भुगतान न कर पाने या जमानत न मिल पाने की वजह से रूकी हुई है।
डॉ. मिश्रा ने इस बात पर जोर दिया कि संशोधित फ्रेमवर्क में हरियाणा में जरूरतमंद कैदियों को तेजी से और प्रभावी राहत देने के लिए सख्त टाइमलाइन और मजबूत संस्थागत व्यवस्था शुरू की गई है। यह पहल न सिर्फ गरीब कैदियों की हालत को सुधारती है, बल्कि इसमें राज्य की जेलों में भी कम करने की भी काफी संभावना है।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि ऐसे अंडरट्रायल कैदियों को जो आर्थिक दिक्कतों के कारण बेल नहीं ले पाते हैं, उन्हें प्रति केस 50,000 रुपये तक की सहायता दी जाएगी और सशक्त कमेटी को खास परिस्थितियों में एक लाख रुपये तक की रकम मंजूर करने का अधिकार होगा। जिन मामलों में एक लाख रुपये से ज्यादा मदद की जरूरत होगी, उन्हें विचार और मंजूरी के लिए राज्यस्तरीय ओवरसाइट कमेटी के पास भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि जिन दोषी कैदियों पर कोर्ट ने जुर्माना लगाया है और जो उसे चुकाने में असमर्थ है, उन्हें सशक्त कमेटी द्वारा 25,000 रुपये तक की सहायता दी जा सकती है, जबकि इससे ज्यादा रकम के लिए ओवरसाइट कमेटी की मंजूरी जरूरी होगी।
डॉ. मिश्रा ने नए एसओपी के तहत तय की गई आसान इम्प्लीमेंटेशन टाइमलाइन पर जोर देते हुए कहा कि अगर किसी अंडरट्रायल कैदी को जमानत मिलने के सात दिनों के अंदर रिहा नहीं किया जाता है तो जेल अधिकारियों को तुरंत डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के सचिव को सूचित करना होगा। कैदी की आर्थिक स्थिति के शुरूआती आकलन और वेरिफिकेशन से लेकर फंड जारी करने और कोर्ट में जमा करने तक की पूरी प्रक्रिया को एक तय समय सीमा के अंदर पूरा करने के लिए बनाया गया है। डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के सचिव जेल विजिटिंग वकीलों, पैरालीगल वॉलंटियर्स या सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों की मदद से पांच दिनों के अंदर कैदी की आर्थिक स्थिति का वेरिफिकेशन करेंगे। इसके बाद, एम्पावर्ड कमेटी रिपोर्ट मिलने के पांच दिनों के अंदर फंड जारी करने का निर्देश देगी और कमेटी के फैसले के पांच दिनों के अंदर रकम कोर्ट में जमा कर दी जाएगी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कहा कि हालांकि इस योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद करना है, लेकिन इसमें गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए जरूरी सुरक्षा उपाय भी शामिल हैं। यह लाभ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम या अन्य खास कानूनों के तहत अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को यह फायदा नहीं मिलेगा। आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपराध, दहेज हत्या, बलात्कार, मानव तस्करी या पीओसीएसओ एक्ट के तहत अपराध जैसे जघन्य अपराधों में शामिल लोगों को भी इस योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा। एम्पावर्ड कमेटी और ओवरसाइट कमेटी इस संबंध में पूरी सावधानी बरतेंगी।
नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) को इस स्कीम को पूरे देश में लागू करने के लिए सेंट्रल नोडल एजेंसी बनाया गया है। एम्पावर्ड या ओवरसाइट कमेटियों की सिफारिशों के आधार पर जरूरी रकम निकालने और लाभार्थी जिस जेल में बंद है, उसके अकाउंट में फंड जारी करने के लिए राज्य जेल मुख्यालय स्तर पर एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा।
डॉ. मिश्रा ने इस बात पर जोर दिया कि संशोधित गाइडलाइंस यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है कि कोई भी व्यक्ति सिर्फ गरीबी की वजह से हिरासत में न रहे। उन्होंने हरियाणा के सभी जिला प्रशासनों, कानूनी सेवा प्राधिकरणों, जेल अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों से इस स्कीम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया। गृह विभाग को निर्देश दिया गया है कि वह पूरे राज्य में सभी संबंधित अधिकारियों को इन गाइडलाइंस को पहुंचाएं ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि संस्थागत नियमों का पूरी तरह पालन हो और योग्य कैदियों को समय पर राहत मिले।
संशोधित गाइडलाइन के तहत हरियाणा के हर जिले में जिलास्तरीय अधिकार प्राप्त समितियां बनाई जाएंगी जिनमें जिला कलेक्टर के कार्यालय, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), पुलिस विभाग, जेल प्रशासन और न्यायपालिका के प्रतिनिधि शामिल होंगे। डीएलएसए के सचिव इन समितियों के संयोजक और समन्वय प्रभारी होंगे, जो मामलों की समीक्षा और मंजूरी के लिए हर महीने के पहले और तीसरे सोमवार को नियमित रूप से बैठक करेंगे। इसके अलावा हरियाणा में निगरानी करने और प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए एक राज्यस्तरीय निगरानी समिति भी बनाई जाएगी जिसमें प्रधान सचिव (गृह/जेल), सचिव (कानून विभाग), राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सचिव, डीजी/आईजी (जेल) और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल शामिल होंगे।





