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फरीदाबाद, 23 मई (जस्प्रीत कौर): संडे की छुट्टी खत्म और अब मंडे आ गया है। मगर क्या आपने सोचा है कि हफ्ते के सात दिनों में से सिर्फ़ संडे को ही ‘स्पेशल ट्रीटमेंट’ क्यों मिलती है? बाकी छ: दिनों के साथ इतनी ‘नाइंसाफी’ क्यों होती है कि सिर्फ संडे को ही छुट्टी रखी जाए? इसके पीछे कई कारण हैं। ज्यादातर कारण धर्म से जुड़े हैं। धार्मिक मान्यताओं के ज़रिए चलते-चलते यह नियम-सा बन गया। धर्म में आस्था ने संडे को छुट्टी बना दिया।
दुनिया के सभी धर्मों में हफ्ते के एक दिन छुट्टी ज़रूर होती है ताकि लोग अपने दैनिक कामों से आज़ाद हो कर ईश्वर का ध्यान करें। इस्लाम में शुक्रवार यानी जुम्मा होता है, यहुदियों और ईसाई धर्म के कुछ संप्रदायों में शुक्रवार के सूर्यास्त से सूर्योदय तक ‘सब्बाथ’ होता है। इसी तरह रोमन कैथलिक और प्रोटेस्टेंट रविवार को ईश्वर का दिन माना जाता है। यूरोप समेत ज्यादातर देशों में लोग सूर्य के दिन ईश्वर की पूजा करते थे। इस दिन वो अपने काम और बाकी चीजों से आज़ादी लेकर सिर्फ ईश्वर का ध्यान करते थे।
अंग्रेजों ने 1843 में सबसे पहले रविवार को छुट्टी की प्रावधान भारत में शुरू किया था। ईसाई धर्म के अनुसार, भगवान ने दुनिया को 6 दिन में बनाया और संडे को आराम किया था।
हालांकि जम्मू के आरटीआई कार्यकर्ता रमन शर्मा ने पीएमओ में संडे की छुट्टी के बारे में पूछा था। 18 जुलाई 2012 को भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के जवाब के अनुसार जेसीएक सेक्शन में आधिकारिक रूप से संडे की छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
21 मई 1985 को जारी किए गए जेसीए के ऑर्डर नंबर 13/4/85 में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने स्पष्ट किया का है कि भारत सरकार सिविल एडमिनिस्ट्रेशन में बेहतर काम के लिए सरकार सोमवार से शुक्रवार, 5 दिन काम करेगी और शनिवार को छुट्टी होगी। इसमें संडे पर कोई टिप्पणी नहीं की गई।
1844 में गर्वनर जेनरल ने स्कूल और कॉलेजों में संडे को छुट्टी घोषित की ताकि स्टूडेंट्स पढ़ाई के साथ-साथ आपस में अच्छी और रचनात्मक चर्चा भी कर सकें। यह दौर मुंबई से शुरु हुआ था।