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खून के आंसू रो रहे हैं 31वें सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में आए स्टॉलधारक हस्तशिल्पी

नोटबंदी और खराब मोबाईल नेटवर्किंग का खामियाजा भुगत रहे हैं हस्तशिल्पी

हरियाण पर्यटन निगम के अधिकारियों को कोस रहे हैं स्टॉलधारक हस्तशिल्पी

मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की विशेष रिपोर्ट
सूरजकुंड/फरीदाबाद, 7 फरवरी: लगातार लुप्त होती जा रही हस्तशिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए लगाए गए हरियाणा स्वर्ण जयंती 31वें सूरजकुंड क्राफ्ट मेले के शुरूआती दो दिनों में तो वो लोग रोए जोकि सैंकड़ों मील दूर से यहां अपना सामान बेचने आए पर रोने-पीटने के बाद भी उनको मेले में स्टॉल नहीं मिले, जिसके चलते उनमें से ज्यादातर हस्तशिल्पी पर्यटन निगम के अधिकारियों को कोसते हुए वापिस चले गए। और अब वो लोग खुन के आंसू रोते हुए पर्यटन निगम के अधिकारियों को कोस रहे हैं जिनको यहां स्टॉल मिले हुए है। कारण है मेले में लोगों का कम आना जिसके चलते उनकी दुकानदारी चौपट हो गई है। रही सही कसर पूरी कर दी नोटबंदी और मोबाईल नेटवर्क ने। नोटबंदी के चलते जहां लोगों में खरीददारी के प्रति इस बार रूझान कम है वहीं जो थोड़ी-बहुत दुकानदारी ऑनलाईन पेमेंट सिस्टम व कार्ड स्वपिंग मशीन यानि कैसलैस आदि के कारण होने की उम्मीद थी वो मेला परिसर में मोबाईल नेटवर्क सही ना होने के कारण समाप्त हो रही है। आलम यह है कि ज्यादातर हस्तशिल्पी अपने-अपने स्टॉलों पर मुंह लटकाए खाली बैठे हुए पर्यटन निगम के अधिकारियों को कोस रहे हैं।
स्टॉलधारकों ने बताया कि कैसलेस की वजह से उन्होंने अपने स्टॉलों पर ऑनलाईन पेमेंट सिस्टम व कार्ड स्वपिंग मशीन लगाई हुई हैं, लेकिन मोबाईल नेटवर्क ना होने से बेहद दिक्कत हो रही है। नेटवर्क ना होने की वजह से लोग पेमेंट नहीं कर पा रहे और सामान वापिस करके चले जाते हैं। वे हरियाण टूरिज्म की व्यवस्था से भी खुश दिखाई नहीं दिए। उनका कहना है कि कई बार नेटवर्क ना होने की शिकायत की गई है, मगर सिर्फ आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिल रहा।
मेला परिसर में कालीन आदि बेचने बैठे वालीब उल्लाह ने बताया कि वो पिछले कई साल से मेले में लगातार आ रहे हैं लेकिन इस बार जैसी मंदी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी जिसके चलते वे परेशान हैं। इसका कहना था कि मेले में बिल्कुल भी काम नहीं है जिसका कारण उन्होंने नोटबंदी और मोबाईल नेटवर्क का नहीं होना बताया। वालीब का कहना था कि मेले में जो थोड़ी बहुत पब्लिक आ रही है वो सामान देखकर उसकी प्रशंसा तो कर रही है लेकिन खरीददारी नहीं कर रही है। और जो लोग कैशलेस के चलते सामान खरीदना भी चाहते हैं वे मोबाईल नेटवर्क ना होने के कारण नहीं खरीद पा रहे हैं क्योंकि खराब नेटवर्क के कारण ट्रांजिक्शन नहीं हो रही है। वालीब के मुताबिक पहले जितनी सेल मेले के शुरूआती दो दिनों में हो जाती थी उतनी तो उनकी इस बार मेले के पांच-छ: दिनों में भी नहीं हुई बावजूद इसके कि बीच में एक रविवार का दिन भी था।
मेला परिसर में वालीब उल्लाह ही अकेला ऐसा हस्तशिल्पी नहीं था, मेले में झारखंड से लकड़ी के स्टूल आदि जैसा नायाब सामान बेचने पहली बार आए दीपक कुमार बेदिया ने बताया कि मेले में सेल बिल्कुल भी नहीं हैं जिसका कारण उन्होंने मेले में जनता कम आना बताया।
यहीं हाल वहां बैठे अन्य हस्तशिल्पीयों और स्टॉलधारकों का भी था जोकि मंदी के मार के शिकार होकर अगली बार मेले में ना आने की तौबा कर रहे थे। यहीं कारण है कि मेले में हर बार उत्साह से आने वाले दुकानदारों के चेहरों से इस बार बिक्री ना होने की वजह से रौनक गायब है। कईयों का तो यह भी कहना था कि अगली बार मेले में आने से पहले उन्हें कई बार सोचना पड़ेगा।
मेले में यदि आगे भी इसी तरह तो हमें यह कहने में कतई भी हिचक नहीं होगी कि भविष्य में हस्तशिल्पी मेले में आने से कहीं हाथ ही ना खड़ा कर दें, बेशक चाहे इन्हें ये स्टॉल नि:शुल्क ही क्यों ना मिलते आ रहे हों। यह एक गंभीर सोच का विषय हैं जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

  


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