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बिमला वर्मा ने कहा कि गुरू शब्द का उच्चारण करने से ही मन में गुरू के प्रति आदर सम्मान के भाव प्रकट होने लगते है

मैट्रो प्लस से ऋचा गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 31 अगस्त: सैक्टर-28 स्थित डायनेस्टी इंटरनेशनल विद्यालय की प्रधानाचार्या एवं शिक्षाविद परमविदूषी प्रतिभा की धनी बिमला वर्मा के अनुसार गुरू शब्द का जैसे ही जिहृा उच्चारण करती है, मन में अनायास ही आदर सम्मान के भाव प्रकट होने लगते है। यह मस्तक अनायास उन चरणों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करने के लिए उत्सुक हो उठता है। जिन्होंने मिट्टी के समान इस देह में ज्ञान का आलोक जगाकर तन-मन को ज्ञान की दिव्य ज्योति से अलंकृत कर दिया।
सर्वविदित है कि भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ० कृष्ण अपने जीवन में शिक्षक की भूमिका को सर्वोपरि स्थान देते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति के सर्वागीण विकास का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह उसका शिक्षक अर्थात गुरू ही होता है। उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष एक आदर्श शिक्षक के रूप में राष्ट्रसेवा में समर्पित किए थे। उनकी दिल से इच्छा थी कि उनका जन्मदिन व्यक्तिगत रूप से न मनाकर शिक्षक सम्मान के प्रतीक रूप में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। तभी से हमारे यहां भारतवर्ष में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में अंगीकार कर लिया गया।
वर्तमान समय में छात्र-गुरू के रिश्तों को गतिमामय बनाए रखने के लिए उनके अनुसार यह उचित भी है कि समय-समय पर छात्रों को गुरू के गतिमामय चरित्र व उसकी समाज के प्रति समर्पण तथा समाज निर्माण की महत्वाकांक्षा से छात्रों को अवगत कराया जाए। साथ ही शिक्षक का भी कत्र्तव्य बनता है कि वह अपने छात्र के सर्वगीण विकास को ध्यान में रखते हुए अपनी शैक्षिक प्रणाली व गतिविधियों में सुधार करें ताकि शिक्षक दिवस की सार्थकता सिद्व हो सके।
गुरू की कृपा से तन मेरा निर्मल पावन यह हो जाए।
हर पल हर क्षण जिह्वा मेरी मेरे गुरू का गान जी ही गा पाए।।


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