मैट्रो प्लस से ईशिका भाटिया की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 30 जनवरी: जरा सोचिए कि आपको अपने घर में लगे एलईडी बल्ब से वाईफाई या ब्रॉडबैंड बिना हाईस्पीड डेटा ट्रांसफर की फैसिलिटी मिले। या जब आप भीड़भाड़ वाले मॉल से गुजरें तो एलईडी से लैस मूवी बिलबोर्ड आपके स्मार्टफोन पर हाई क्वॉलिटी प्रमोशनल वीडियो और गाने चलें। आपको किसी साइंस फिक्शन मूवी के सीन के बारे में नहीं बता रहे हैं। भारत सरकार एक ऐसी टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग कर रही है जो इसके अलावा बहुत से फीचर्स मुहैया करा सकती है।
हालिया पायलट प्रोजेक्ट में मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी ने लाईफाई लाइट फिडेलिटी टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग की है। इसमें 10 जीबी प्रति सेकेंड तक की स्पीड से एक किलोमीटर के दायरे में डेटा ट्रांसमिशन वाले एलईडी बल्ब और लाइट स्पेक्ट्रम यूज किए जाते हैं। इस टेस्टिंग का मकसद उन बीहड़ इलाकों तक इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचाना है जहां फाइबर केबल तो नहीं पहुंचा है लेकिन बिजली जरूर है।
इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अस्पतालों को कनेक्ट करने में किया जा सकता है जहां कुछ इक्विपमेंट्स के चलते इंटरनेट सिग्नल हमेशा टूटता रहता है। इसके जरिए अंडरवॉटर कनेक्टिविटी भी मुहैया कराई जा सकती है।
मिनिस्ट्री के तहत पायलट प्रोजेक्ट चलाने वाली ऑटोनॉमस साइंटिफिक बॉडी एजुकेशन एंड रिसर्च नेटवर्क की डॉयरेक्टर जनरल नीना पाहुजा ने कहा लाईफाई का इस्तेमाल स्मार्टसिटीज में किया जा सकता है जो मॉडर्न सिटी मैनेजमेंट के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स थीम पर बनाई जा रही हैं और जो एलईडी बल्ब के जरिए कनेक्ट की जा सकती हैं। स्मार्ट सिटीज में वेस्ट डिस्पोजल से लेकर ट्रैफिक मैनेजमेंट तक के लिए बड़े पैमाने पर इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल होगा।
लाईफाई का पायलट प्रोजेक्ट इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मद्रास के सहयोग से उसके कैंपस में लाइटिंग कंपनी फिलिप्स के साथ मिलकर कुछ महीने पहले किया गया था। पायलट प्रोजेक्ट क्लोज एनवायरमेंट में शुरू किया गया था। जिसे ERNET ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंगलोर के साथ पाटर्नरशिप में ओपन स्पेस में टेस्ट करने का प्लान बनाया है। फिलिप्स लाइटिंग इंडिया के मैनेजिंग डॉयरेक्टर सुमित जोशी ने ईटी को बताया हम इनोवेशन को लेकर कमिटेड हैं। नई और इमेर्जिंग टेक्नोलॉजीज में मौके तलाशते रहेंगे।
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के मोबाइल कम्युनिकेशन के प्रोफेसर हेरल्ड हास ने दो साल पहले लाईफाई टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना शुरू किया था। तब से गूगल जैसी कंपनियां और नासा जैसे ऑर्गनाइजेशंस इस टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग में जुटी हैं।
इंडिया में पिछले कुछ वर्षो में वाइटस्पेस जैसे विकल्पों के साथ भी प्रयोग किया गया है, जिसमें टीवी चैनलों के बीच डेटा रिले के लिए अनयूज्ड स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है। गूगल ने एलटीई या 4जी टेक्नोलॉजी के जरिए 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर तैरते बैलून के जरिए डेटा ट्रांसमिशन की भी टेस्टिंग की है। वाइटस्पेस में लाइसेंस्ड मोबाइल स्पेक्ट्रम की जरूरत होती है जिसका टेलीकॉम लॉबी विरोध कर रही है। गूगल के लून प्रोजेक्ट को खास कामयाबी नहीं मिल पाई है।