नवीन गुप्ता
फरीदाबाद, 4 फरवरी: सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का मुख्य उद्देश्य देश के सुदूरवर्ती भागों से आए शिल्पकारों को उपभोक्ताओं तक सीधी पहुंच उपलब्ध करवाना है। ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल प्लेटफार्म के माध्यम से शिल्पकार अपने हस्तनिर्मित तथा प्राकृतिक उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार तक पूरा साल पहुंच कायम रख सकेंगे। हरियाणा पर्यटन निगम की प्रबंध निदेशक तथा सूरजकुंड मेला प्राधिकरण की मुख्य प्रशासक सुमिता मिश्रा ने आज यहां इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के साथ कदमताल करते हुए मेला प्राधिकरण तथा हरियाणा पर्यटन ने कई नए कदम उठाए हैं। उन्होंने बताया कि ह्यठ्ठड्डश्चस्रद्गड्डद्य.ष्शद्व तथा द्घद्यद्बश्चष्ड्डह्म्ह्ल.ष्शद्व जैसे ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल भी सूरजकुंड के इस अंतर्राष्टï्रीय शिल्प मेले में आए हैं। जोकि इन पोर्टल्स पर अपने उत्पाद बेचने के इच्छुक शिल्पकारों का पंजीकरण करते हैं।
श्रीमती मिश्रा ने बताया कि सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला विश्व में सबसे बड़ा शिल्प मेला है जोकि राष्टï्रीय तथा राज्य पुरस्कार विजेता शिल्पकारों, बुनकरों तथा कलाकारों को उनकी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए एक आदर्श मंच उपलब्ध करवाता है। यह मेला आयोजित करने का उद्देश्य राष्टï्र के परम्पंरागत शिल्पों की पहचान करना, उनको बढ़ावा देना और संरक्षण करना तथा कुशल कारीगरों, जोकि स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं, परन्तु सस्ते मशीन निर्मित उत्पादों के चलते प्रभावित हैं को प्रोत्साहित करना है। उन्होंने बताया कि प्रौद्योगिकी के इस युग में यह मेला हमारे शिल्पों तथा पुरातन परम्पराओं का संरक्षक बन गया है तथा वास्तव में इस मेले में हमारी भावी पीढिय़ों के सीखने के लिए बहुत कुछ है। यह आगंतुकों तथा परम्परागत शिल्पकारों के बीच एक कड़ी का काम करता है।
श्रीमती मिश्रा ने बताया कि यहां परम्परागत शिल्पों के प्रदर्शन के लिए एक विशेष क्षेत्र निर्धारित किया गया। इस क्षेत्र के अंदर एक कदम पर ही अनूठे शिल्प तथा इनके बनाने के तरीके को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। कुरुक्षेत्र से आए राष्टï्रीय पुरस्कार विजेता चित्रकार सी. नायक यहां हट संख्या 956 में ठहरे हुए हैं। वे जूट थ्रेड तथा राइस पेस्ट, स्टोन तथा फ्रूट पाउडर से बने रंग से पेंटिंग बनाते हैं। वे कहते हैं कि मेरी कला अनूठी है तथा इस मेले के माध्यम से मुझे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का एक आदर्श मंच प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार हट संख्या 958 में राज्य पुरस्कार विजेता मोहम्मद फारूख तथा राष्टï्रीय पुरस्कार विजेता उनके पिता हाजी नसीरूद्दीन ठहरे हैं, जोकि गोल्ड तथा सिल्वर प्लेटिंग के आकर्षक ब्रास आइटम लेकर आए हैं। फारूख कहते हैं कि यह हमारा परम्परागत शिल्प है। इस प्रकार की कला अब बहुत कम प्रचलन में है क्योंकि इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है। वह कहते हैं कि हम अपनी कला को बरकरार रखने के लिए नित नए प्रयोग करते रहते हैं। इसी प्रकार मंगल सिंह और उनके पुत्र राजेन्द्र सिंह के माध्यम से उत्तराखंड की काष्ठï कला भी मेले में आई है, जोकि हट संख्या 949 में ठहरे हुए हैं। मंगल सिंह बताते हैं कि यह हमारे प्राचीनत्तम शिल्पों में से एक है जिससे मुख्य दरवाजे, खिड़कियां और फ्रे म आदि सजाए जाते हैं।
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