54वें दिन भी जारी रहा एनएसयूआई का अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन
मैट्रो प्लस से जस्प्रीत कौर की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 28 सितम्बर: अनिश्चितकालीन धरने के 54वें दिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिवस पर एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। कार्यक्रम का आयोजन एनएसयूआई हरियाणा के प्रदेश सचिव कृष्ण अत्री की अध्यक्षता में किया गया। इस दौरान छात्रों ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा कर भगतसिंह को याद किया।
एनएसयूआई हरियाणा के प्रदेश सचिव कृष्ण अत्री ने शहीद भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के समय में भगत सिंह केवल एक वीर शहीद इंसान ना होकर बल्कि एक विचारधारा बन गये हैं, उन्होंने बताया की 1907 में आज ही के दिन भारत मां के क्रांतिकारी सपूत ने जन्म लिया था जिसने पूरे देश में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाया था। उन्होंने कहा कि वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे।
अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्वेश्य सेवा त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
इस मौके पर अत्री ने बताया कि इसके बाद भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को मारा। इस कारवाई में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी सहायता की। इसके बाद भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़ दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल से बली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके। बम फेंकने के बाद वहीं पर उन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।
इसके बाद लाहौर षडयंत्र के इस मुकदमें में भगत सिंह को और उनके दो अन्य साथियों, राजगुरू तथा सुखदेव को 23 मार्च, 1931 को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया।
भगत सिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। आज भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। देश की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती हैं।
इस मौके पर नेहरू कॉलेज उपाध्यक्ष अभिषेक वत्स, छात्र नेता अंकित गौड़, दिनेश कटारिया, रोहित चौहान, अक्की पंडित, यूसुफ खान, अजित, बलजीत, मोहित, अनिल, विकास, रवि एवं अन्य छात्रों ने श्रद्धाजंलि दी।