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ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली: भाटिया

मैट्रो प्लस से जस्प्रीत कौर की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 11 अक्टूबर: सिद्धपीठ वैष्णोदेवी मंदिर में नवरात्रों के दूसरे दिन मां ब्रहमचारिणी की भव्य पूजा अर्चना की गई। प्रातकालीन आरती में सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और मां ब्रहमचारिणी की भव्य पूजा की। इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया, उद्योगपति आर.के. बत्तरा, सुरेंद्र गेरा एडवोकेट, कांशीराम, अनिल ग्रोवर, नरेश, रोहित, बलजीत भाटिया, अशोक नासवा, प्रीतम धमीजा, सागर कुमार, गिर्राजदत्त गौड़, फकीरचंद कथूरिया नेतराम एवं राजीव शर्मा प्रमुख रूप से उपस्थित थे। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने बताया कि नवरात्रों के विशेष अवसर पर मंदिर के कपाट चौबीस घंटे खुले रहते हैं। भक्तों के लिए प्रतिदिन विशेष तौर पर प्रसाद व खीर का वितरण किया जाता है।
मंदिर में पूजा के उपरांत श्री भाटिया ने मां ब्रहमचारिणी के संदर्भ में बताया कि नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में मां के हर रूप की पूजा विधि और कथा का महत्व बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी की कथा जीवन के कठिन क्षणों में भक्तों को संबल देती है।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। मां के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा-हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की, यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे, अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।


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