Metro Plus News
Uncategorizedगुड़गांवदिल्लीफरीदाबादराजनीतिराष्ट्रीयहरियाणा

कोट गांव के गैर-मुमकिन पहाड़ों पर गिद्द दृष्टि लगाए बैठे भू-माफियों को सरकार का जोरदार झटका! देखें कैसे?

कोट गांव के गैर-मुमकिन पहाड़ की चकबंदी मामले में सरकार ने कैसे कदम पीछे किए? पढ़ें!
कोट गांव में गैर-मुमकिन पहाड़ की चकबंदी विवादों में, मामला एनजीटी के बाद अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पहुंचा।
मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की खास रिपोर्ट
फरीदाबाद, 24 जुलाई:
अरावली की गोद में बसे कोट गांव के गैर-मुमकिन पहाड़ों की चकबंदी करने के मामले में सरकार द्वारा अपने पैर पीछे खींचने के बाद उन भू-माफियों की सांसे अधर में रूक गई हैं जोकि कोट गांव की 3184 एकड़ भूमि में से गैर-मुमकिन पहाड़ों की 2565 एकड़ पर अपनी गिद्द दृष्टि जमाए हुए बैठे थे। ऐसे लोगों में फरीदाबाद के कई भू-माफिया, विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता और उद्योगपति शामिल बताए जाते हैं जोकि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस मामले में जुड़े हुए हैं।
बता दें कि स्थानीय लोगों के भारी विरोध के चलते और इस मामले के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि एनजीटी में और वहां से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पहुंचने के बाद प्रदेश सरकार को यह कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा। प्रदेश सरकार के चकबंदी विभाग ने इस विवादाग्रस्त मामले में अपने नोटिफिकेशन नं.-ईए4/432 के तहत एक फरवरी, 2019 को कोट गांव के गैर-मुमकिन पहाड़ों की चकबंदी करने के आदेशों को अब चौथी बार अपने पत्रांक न.-3637 दिनांक 23-07-2021 के तहत वापिस फिर से वापिस ले लिया है।
काबिलेगौर रहे कि हरियाणा चकबंदी निदेशक की ओर से चौथी बार जारी नोटिफिकेशन नं.-ईए4/432 के तहत एक फरवरी, 2019 को उक्त भूमि की चकबंदी का आदेश चौथी बार जारी किया गया। कोट गांव के लोगों का आरोप है कि पंजाब विलेज कॉमन लैड रेगुलेशन एक्ट-1961 की आड़ लेकर सरकार सार्वजनिक/शामलात भूमि का निजीकरण करना चाहती है। रिकार्ड के अनुसार यहां 3184 एकड़ भूमि के 4656 भू-स्वामी है और केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 7 मई, 1992 को जारी अपने एक नोटिफिकिशन में अरावली को वन क्षेत्र घोषित किया हुआ है। जबकि कुछ भू-माफिया इस नोटिफिकेशन को अलवर (राजस्थान) और गुरूग्राम की अरावली के लिए ही मान्य बताकर इसके फरीदाबाद से संबंधित ना होने का दावा कर गुमराह करने का प्रयास करने में लगे थे। जबकि वास्तविकता यह है कि 1992 का उक्त नोटिफिकेशन फरीदाबाद जिले के अंर्तगत 9208 हेक्टेयर के अरावली क्षेत्र पर भी लागू है। इस अरावली में से 1514 हेक्टेयर तो खनन के बाद पिट के लिए छोड़ी गई है जबकि 227 हेक्टेयर में पानी भरा हुआ है जिसमें डेथ लेक भी शामिल है। मुश्किल से 6.23 प्रतिशत हिस्सा हरियाला में बाकी बचा बताया जाता है।
बताया जाता है कि गत 15-20 सालों में चोरी-छिपे इस भूमि को बेचा गया है। जिसके लिए गुडगांव के तत्कालीन उपायुक्त की ओर से आदेश किया गया था कि उक्त भूमि को ग्रामीणों को वापस किया जाए। पंचायत की ओर से इस बारे में राजस्व विभाग में शायद एक मामला आज भी विचाराधीन है।
बता दें कि गुडगांव-फरीदाबाद को जोडऩे वाले स्टेट हाईवे पर स्थित कोट गांव अरावली की गोद में स्थित है। इस कोट गांव में करीब 250 परिवार रहते हैं और यह सरकार के मास्टर प्लान-2031 के अंर्तगत आने वाला गांव है। इसके अंर्तगत 8 लेन की सड़क का निर्माण होना है जोकि गुडगांव-फरीदाबाद सहित दक्षिण दिल्ली को जोड़ेगा। इस गांव के लोगों की 80 फीसदी जमीनें गैर-मुमकिन पहाड़ के अंर्तगत आती है। चूंकि गैर-मुमकिन पहाड़ के अंतर्गत आने वाली जमीन पर किसी भी प्रकार की खेती अथवा निर्माण कार्य प्रतिबंधित किया गया है, इसलिए इस तरह की भूमि को शामलात भूमि का भी नाम दिया गया है जो ग्रामीणों की सार्वजनिक भूमि है। साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार इस तरह की भूमि पर ग्राम पंचायत का अधिकार है। इसे लेकर साल 2018 में चार लोगों ने मामला दायर किया गया कि जिन लोगों ने अवैध तरीके से इस भूमि की खरीद-फरोख्त की है, उसे वापस किया जाए। करीब 400 एकड़ भूमि को लेकर इन लोगों ने 321 लोगों की पॉवर ऑफ एटार्नी समझौता होने का दावा किया।
आरोप है कि इनमें से एक व्यक्ति आयुर्वेद फर्म के लिए इस जमीन का प्रयोग करने के लिए सार्वजनिक भूमि का प्रयोग करना चाहता है जिसके फर्म में 100 फीसदी हिस्सेदारी एक दवाईयों वाले बाबा की बताई जाती है। रियल एस्टेट में कार्यरत उक्त व्यक्ति सैकड़ों करोड़ रुपए अदा करके पॉवर ऑफ एटार्नी के माध्यम से उक्त जमीन का मालिक बन बैठा है।
बता दें कि पिछले काफी समय से अरावली की तकरीबन 400 एकड़ भूमि को दवाईयों वाले बाबा को देने का आरोप सामने चलता आ रहा है। कहा जाता है कि फरीदाबाद के कोट गांव से लगी भूमि को नियमों की अनदेखी करके इस बाबा को विश्वविद्यालय बनाने के लिए दिया जा रहा है जोकि ग्राम समाज की सार्वजनिक भूमि बताई जाती है। इस भूमि को लेकर कंसोलिडेशन प्रक्रिया गुडगांव प्रशासन के पास शायद अब भी लंबित है। साल 2014 से 2016 के बीच ही 300 पॉवर ऑफ एटार्नी समझौता बनवाकर सार्वजनिक भूमि को बेचने का आरोप है।
अब देखना यह है कि चकबंदी करने के चौथी बार वापिस हुए आदेशों के बाद कोट गांव इस गैर-मुमकिन पहाड़ों की 2565 एकड़ पर अपनी गिद्द दृष्टि जमाए बैठे भू-माफिया भविष्य में क्या रणनीति अपनाते हैं।


Related posts

GST लागू होने पर टमाटर ने दिखाया अपना असली रंग,100 रुपए किलो तक बिक रहा है टमाटर

Metro Plus

भाजपा राज में बुनियादी सुविधाओं से महरूम है क्षेत्र के लोग: लखन सिंगला

Metro Plus

लोकेश अग्रवाल बने श्री वैश्य अग्रवाल समाज के महासचिव।

Metro Plus