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मनोनीत पार्षद नहीं बन पाएंगे डिप्टी मेयर और कमेटियों के मेंबर! जानें क्यों?

मनोनीत पार्षदों को सरकार से क्या मिलेंगे फायदे और डिप्टी मेयर बन सकते हैं या नहीं? जानें!
Metro Plus से Naveen Gupta की रिपोर्ट
चंड़ीगढ़/फरीदाबाद, 10 जुलाई:
हरियाणा सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय विभाग के आयुक्त एवं सचिव विकास गुप्ता द्वारा हस्ताक्षरित दो अलग-अलग नोटिफिकेशन के मार्फत प्रदेश के कुल 80 नगर निकाय अर्थात नगर निगमों/नगरपालिका परिषदों/नगरपालिका समितियों में से यानि प्रत्येक निकाय में दो से तीन नॉमिनेटेड मेंबर (मनोनीत सदस्य) के नाम अधिसूचित किये है। वो बात अलग है कि नगर निकाय में मनोनीत सदस्य सदन की किसी भी बैठक में चाहे सामान्य या विशेष, वोट नहीं डाल सकते हैं। यही नहीं,कानूनन वह सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट एवं म्युनिसिपल कानून के जानकार हेमंत कुमार के मुताबिक इसके अतिरिक्त चूंकि मनोनीत सदस्यों को वोटिंग अधिकार नहीं है, इसलिए उनको नगर निगम की विभिन्न कमेटियों (समितियों) का सदस्य भी नहीं बनाया जा सकता है। नगर निगम कानून और उनके अंतर्गत बनाए निर्वाचन नियमों में मनोनीत सदस्यों की शपथग्रहण का भी कोई प्रावधान या उल्लेख नहीं है। इस सम्बन्ध में विभाग के प्रशासनिक सचिव या आयुक्त एवं सचिव द्वारा जारी एवं सरकारी गजट में प्रकाशित गजट नोटिफिकेशन ही पर्याप्त होती है।

एडवोकेट हेमंत के मुताबिक नगर निगम में मनोनीत सदस्य को प्रतिमाह 15 हजार रूपये, नगरपालिका परिषद में मनोनीत सदस्य को प्रतिमाह 12 हजार रूपये जबकि नगरपालिका समिति में मनोनीत सदस्य को प्रतिमाह 8 हजार रुपये मानदेय प्राप्त होता है। हालांकि इस संबंध में सारा व्यय (खर्चा) हरियाणा सरकार के खजाने से नहीं बल्कि संबंधित म्युनिसिपेलिटी (नगर निकाय) के फंड में से ही किया जाता है। बेशक नगर निकाय की प्रतिमाह बैठक हो या न हो, सभी पदाधिकारियों को हर महीने मानदेय की धनराशि अवश्य प्राप्त होती है जो प्रतिमाह लाखों में बनती है।

एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 (आर) के अनुसार बल्कि हरियाणा नगर निगम कानून-1994, जो प्रदेश की सभी नगर निगमों पर लागू होता है, की धारा 4 और हरियाणा नगरपालिका कानून-1973, जो प्रदेश की सभी नगरपालिका परिषदों एवं नगरपालिका समितियों पर लागू होता है, की धारा 9 में प्रदेश सरकार द्वारा सम्बंधित नगर निकायों में उन व्यक्तियों को ही सदस्य के रूप में मनोनीत (नॉमिनेट) करने का उल्लेख है जो नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव रखते हो। नगर निगम (म्युनिसिपल कारपोरेशन) और नगरपालिका परिषद (म्युनिसिपल कौंसिल) में अधिकतम 3 जबकि नगरपालिका समिति (म्युनिसिपल कमेटी) में अधिकतम 2 सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा नॉमिनेट किया जा सकता है।

हालांकि वास्तविकता यह है कि प्रदेश सरकार म्युनिसिपल प्रशासन में विशेषज्ञों के स्थान पर सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओ को ही मनोनीत सदस्य बनाती है। यहां तक कि कई बार सम्बंधित नगर निकाय के संपन्न हुए आम चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ पराजित हुए उम्मीदवारों को या जिन पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव में टिकट नहीं मिल सकी थी, को मनोनीत सदस्य के तौर नोमिनेट कर नगर निकाय में समायोजित कर दिया जाता है।


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