हरियाणा पुलिस कानून, 2007 अनुसार प्रदेश के डीजीपी का न्यूनतम नहीं बल्कि अधिकतम कार्यकाल 2 वर्ष
Metro Plus से Naveen Gupta की रिपोर्ट।
Chandigarh, 16 दिसंबर: हरियाणा सरकार के गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) डॉ. सुमिता मिश्रा द्वारा जारी आदेश में प्रदेश के निवर्तमान DGP (प्रदेश पुलिस फोर्स प्रमुख) शत्रुजीत कपूर जो पिछले दो माह अवकाश पर रहे, उन्हें ताजा तैनाती हरियाणा पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन के तौर पर दी गई है। जबकि गत् दो माह से प्रदेश के कार्यवाहक DGP ओपी सिंह जिनके पास हालांकि मुख्य चार्ज हरियाणा स्टेट नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो के महानिदेशक और डायरेक्टर FSL का है, आगामी आदेशों तक कार्यवाहक DGP बने रहेंगे। वैसे ओपी सिंह की IPS से रिटायरमेंट इसी IPS से सेवानिवृत्त होंगे।
इसी बीच प्रदेश के अगले नियमित DGP के चयन हेतु एम्पेनेल्मेंट के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को भेजे जाने पांच वरिष्ठ IPS अधिकारियों के पैनल में हालांकि शत्रुजीत का भी नाम शामिल होगा। चूंकि उनकी छ: महीने की IPS में सेवा शेष है। शत्रुजीत के अतिरिक्त हरियाणा सरकार द्वारा UPSC को भेजे जाने वाले पैनल में 1991 बैच के IPS संजीव कुमार जैन (रिटायरमेंट 30 सितम्बर, 2026), 1992 बैच के अजय सिंघल (रिटायरमेंट 31 अक्टूबर, 2028) और 1993 बैच के आलोक मित्तल (रिटायरमेंट 30 जून, 2029) और अर्शिंदर सिंह चावला (रिटायरमेंट 30 सितम्बर, 2027) का नाम होगा। UPSC द्वारा एम्पेनेल्मेंट कर राज्य सरकार को भेजे जाने वाले IPS के पैनल में से हरियाणा सरकार एक को प्रदेश का DGP नियुक्त करेगी जिसका कार्यकाल दो वर्ष का होगा बेशक उसकी सेवानिवृत्ति कभी भी हो।
बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट एडवोकेट और कानूनी-प्रशासनिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण कानूनी पॉइंट उठाते हुए बताया कि हरियाणा पुलिस अधिनियम (कानून), 2007 की मौजूदा धारा 6(2), जो राज्य के DGP के कार्यकाल की अवधि से संबंधित है एवं जिसमें सात वर्ष पूर्व दिसंबर, 2018 में प्रदेश विधानसभा द्वारा संशोधन किया गया था, जो संशोधन 10 जनवरी 2019 से लागू हुआ, में स्पष्ट तौर पर उल्लेख है कि राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) का कार्यकाल एक वर्ष से कम नहीं होगा जो एक और वर्ष तक और विस्तार योग्य होगा। अत: उक्त धारा अनुसार DGP की पदावधि अधिकतम दो वर्ष तक ही हो सकती है। अगर उक्त धारा की कानूनी तौर पर पूर्ण अनुपालना की जाए जो राज्य सरकार प्रदेश DGP को उसकी नियुक्ति के आरम्भ में निरंतर दो वर्ष के कार्यकाल के लिए नियुक्त नहीं कर सकती हैं। उन्हें सर्वप्रथम एक वर्ष के लिए एवं उस अवधि के पश्चात एक और वर्ष के लिए ही विस्तार दिया जा सकता है।
हेमंत के मुताबिक दिसंबर, 2018 में संशोधन से पूर्व हरियाणा पुलिस कानून, 2007 की मूल धारा 6(2) में DGP के न्यूनतम कार्यकाल के तौर पर ही एक वर्ष का उल्लेख था बेशक उसकी सेवानिवृत्ति कभी भी हो अर्थात तब उसमें अधिकतम अवधि के तौर पर दो वर्ष की समय सीमा नहीं थी।
वर्ष 2010 में जब प्रदेश की तत्कालीन हुड्डा सरकार ने उक्त धारा 6 (2) में विधानसभा मार्फत संशोधन कराया तब भी प्रदेश DGP के न्यूनतम कार्यकाल के तौर एक वर्ष का उल्लेख कायम रखा था। हालांकि उसके साथ यह जोड़ दिया गया था कि वह उसकी सेवानिवृत्ति की सामान्य तिथि पर निर्भर रहेगा अर्थात अगर नवनियुक्त DGP की उसकी नियुक्ति के एक वर्ष से पहले ही IPS से सेवानिवृत्ति निर्धारित हुई तो उसे समयपूर्व अर्थात एक वर्ष से भी पहले हटाना संभव होगा।
हेमंत के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा सितम्बर, 2006 में बहुचर्चित प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में देश में पुलिस सुधारों पर ऐतिहासिक निर्णय में दिए गए छ: निर्देशों में राज्य के पुलिस फोर्स प्रमुख अर्थात प्रदेश DGP का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष निरंतर होगा, चाहे उस पद पर आसीन IPS अधिकारी की सेवानिवृति की तिथि कुछ भी हो। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस निर्देश में DGP के कार्यकाल के सम्बन्ध में अधिकतम सीमा का कोई संदर्भ नहीं है। हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007 की मूल धारा 6 (2) में कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं होने के कारण ही तत्कालीन DGP आरएस दलाल अपने पद पर छ: वर्ष तक निरंतर अर्थात नवंबर, 2006 से अक्टूबर, 2012 तक निरंतर बने रहे थे।
हेमंत ने हरियाणा सरकार से अपील की है कि 18 दिसम्बर से आरम्भ हो रहे प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में हरियाणा पुलिस कानून, 2007 की धारा 6(2) में पुन: संशोधन करने गंभीर विचार करें जिसमें हरियाणा के DGP के कार्यकाल में कोई अधिकतम सीमा उल्लेखित न हो। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के पुलिस सुधारों पर सितम्बर, 2006 में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय और उसके बाद समय समय पर दिये गए आदेशों में राज्य पुलिस प्रमुख के अधिकतम कार्यकाल निर्धारित करने का कोई निर्देश नहीं है। हरियाणा पुलिस कानून, 2007 की धारा 6 में ऐसा कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनुकूल न हो।







