नवीन गुप्ता
फरीदाबाद, 13 जनवरी: मूछों को थोड़ा राउंड घुमा के, अन्ना के जैसे चश्मा लगा के,कोकोनट में लस्सी मिला के, आ जाओ सारे मुड बना के। ऑल द रजनी फैन्स् थलाईवा डोन्ट मिस द चैंस थलाईवा लूंंगी डेन्स् लूंगी डेन्स्। जैसे ही इस फिल्मी गाने पर अनु झा ने अपनी डांस परर्फोमेंस देनी शुरू की, वैसे ही पूरा हॉल तालियों की गडग़ड़ाहट से गुंज उठा। मौका था सावित्री पॉलिटेक्निक फॉर वुमेन की नेहरू ग्राउंड ब्रांच द्वारा आयोजित लोहड़ी उत्सव का जिसमें संस्थान की छात्राएं विभिन्न फिल्मी गानों पर अपनी परर्फोमेंस दे रही थी। पॉलिटेक्निक की फैशन डिजाईनिंग की छात्रा अनु झा ने तो कार्यक्रम में समां बांध दिया।
डांस टीचर अनु झा के अलावा शुभ्रा, मुमताज, पूनम, मिथलेस, काजल तथा दीक्षा आदि छात्राओं ने भी अलग-अलग गु्रपों में अपनी डांस की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। इस लोहड़ी उत्सव में पॉलिटेक्निक की छात्राओं ने लोहड़ी जलाकर उसके चारों ओर ढोल की धूनों पर डांस कर और गाने गाकर अपनी खुशी का इजहार किया तथा अग्नि में रेवड़ी, मूंगफली व मक्की के दानों की आहुति दी।
लोहड़ी उत्सव में संस्थान के चैयरमेन एस.एस. दुग्गल व प्रधानाचार्य कमलेश शाह ने भी सभी फैकल्टी मेंबर्स सहित अग्नि प्रज्जवलित कर उसके चारों तरफ परिक्रमा करते हुए पूजा की और अग्नि में रेवड़ी, मूंगफली और मक्की के दानों से आहुति दी।
अंत में संस्था की प्रधानाचार्य कमलेश शाह ने कार्यक्रम का समापन करते हुए सभी छात्राओं के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए उन्हें लोहड़ी उत्सव की बहुत-बहुत बधाई दी।
गौरतलब रहे कि मकर सक्रांति से एक दिन पूर्व लोहरी का त्यौहार मनाया जाता है। पंजाबी बिरादरी के लिए तो लोहड़ी खास महत्व रखती है।
जानिए लोहड़ी की महत्ता:-
लोहड़ी का पर्व एक मुस्लिम राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पुरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है। दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है। पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था। ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहां के लोगों का टकराव चलता था।
दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था। वे मुगलों को लगान नहीं देते थे। मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता फरीद खान भट्टी का वध करवा दिया। दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा। मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था। मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था। दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई। सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था। उसकी दो पुत्रियां थी सुन्दरी और मुंदरी। गांव का नम्बरदार इन लडकियों पर आंख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे।
सुंदर दास ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई। दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गांव में जाकर ललकारा। उसके खेत जला दिए और लड़कियों की शादी वहीं कर दी जहां सुंदर दास चाहता था। इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है।
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है:
सुंदर मुंदरिए-हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया-हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था। उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब (पाकिस्तान) में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़ें जमीदार हैं।
लोहड़ी दी लख लख बधाईयां