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ढ़ोगरा कला में छत्तीसगढ़ की सभ्यता एवं संस्कृति का मूल समाहित

हिंदुस्तान में कहीं और देखने को मिलती नहीं ढ़ोगरा कला
जस्प्रीत कौर
फरीदाबाद, 10 फरवरी: पूरे भारतवर्ष में जिस कला के दर्शन केवल मात्र छत्तीसगढ़ में होते हैं उस ढ़ोगरा कला को अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में दर्शाया जा रहा है। स्टाल नंबर-794 पर जयराम सोलंकी ने ढ़ोगरा से बनाई वस्तुओं को प्रदर्शित किया है, जिसने लोगों को अपना दिवाना-सा बना दिया है। लकड़ी के फ्रेम में ढ़ोगरा कला के कांस्य के बारीक कार्य ने लोगों को सहज ही अपनी ओर खिंचने में सफलता पाई है।
ढ़ोगरा कला के शिल्पकार छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं, जिन्होंने इस कला को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने के लिए सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में स्टॉल लगाई है। वह पहले भी इस मेले मे छ: बार अपनी कला को प्रदर्शित कर चुके हैं, जिसके लिए उन्हें गत् वर्ष बैस्ट क्राफ्ट के अवार्ड से भी सुशोभित किया जा चुका है। उनका कहना है कि ढ़ोगरा कला हिंदुस्तान में कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। ढ़ोगरा कला का केंद्र छत्तीसगढ़ है।
ढ़ोगरा कला में लकड़ी के फ्रेम में कांस्य के प्रयोग से सुंदर आकृतियां बनाई जाती हैं। इनमें प्रमुख तौर पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं सभ्यता को उकेरने का कार्य किया जाता है। मानवीय आकृतियों में इस प्रदेश के रीति-रिवाज एवं त्योहार आदि अवसरों को प्रदर्शित किया जाता है। लगभग हर रचना में मानवीय आकृति प्रयोग की जाती है, जिससे इस कला को एक अलग पहचान मिलती है। बेहद बारीक कार्य को हाथों से अति सुुंदर रूप प्रदान किया जाता है, जिसे देखकर लोग अत्यधिक प्रभावित हुए बिना नहीं रहते।
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में शिल्पकार जयराम सोलंकी ने 400 रुपये से लेकर 80 हजार रुपये तक की रचनाओं को प्रदर्शित किया है। उनका कहना है कि इन रचनाओं का गंभीरता से अवलोकन करने पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि ढ़ोगरा में आदिवासी जीवन को आधार बनाया गया है। इनमें मानव आकृतियों को वाद्ययंत्रों के साथ दर्शाया है जो खुशी का इजहार कर रहे हैं। खेती-बाड़ी करने वालों को किसान के रूप में कृषक उपकरणों के साथ दिखाया गया है। उनका कहना था कि इस कला को लोगों के घरों तक पहुंंचाया गया है, जिसके प्रयोग से बेहतरीन सज्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि डे ढ़ोगला कला से एक ट्रि ऑफ लाइफ नामक पेड़ भी बनाया गया है, जिसे छोटे रूप से विशाल आकृति के रूप में बनाया गया है। सबसे बड़े वृक्ष (ट्रि आफ लाइफ) का मूल्य 80 हजार तथा मध्य आकार के वृक्ष की कीमत 35 हजार रुपये बताई जाती है। इन्हें घरों इत्यादि स्थानों पर साज-सज्जा के रूप में प्रयोग करने को शुभ माना जाता है। उन्होंने कहा कि वे इस कला को देश के कोने-कोने में पहुंचाना चाहते हैं। इसके लिए सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला एक बेहतरीन प्लेटफार्म है।

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