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सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम बहनों के लिए नई सुबह लेकर आया

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा तीन तलाक पर 6 महीने के लिए रोक
मैट्रो प्लस से जस्प्रीत कौर की रिपोर्ट
फरीदाबाद 22 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन बार तलाक कहकर पत्नी से नाता तोड़ लेने को असंवैधानिक करार देते हुए तीन तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगा दी है। देश की सबसे बड़ी कोर्ट ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी कहा है कि वह संसद में तीन तलाक पर नया कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून सबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा। केंद्र ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के सबंध में कानून बनाने में केंद्र सरकार की मदद करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किए जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता। कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ में 3 जज इसे अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे। वहीं 2 जज इसके पक्ष में नहीं थे। इससे पूर्व 11 से 18 मई तक रोजाना सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए आज का दिन मुकर्रर किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय में शादी तोडऩे के लिए यह सबसे खराब तरीका है। ये गैर जरूरी है। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वह कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है। सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि कैसे कोई पापी प्रथा आस्था का विषय हो सकती है।
दरअसल शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी। इस पर शायरा का तर्क था कि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था का। उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और ईश्वर के बीच में पाप है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है कि ये बुरा है। पाप है और अवांछनीय है।
पर्सनल लॉ बोर्ड को तलाक पर अदालती निर्णय स्वीकार होगा। फैसले के बाद तय करेगा आगे की रणनीति
इस खंड पीठ में सभी धर्मो के जस्टिस शामिल हैं जिनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर सिख, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन पारसी जस्टिस यूयू ललित हिंदू और जस्टिस अब्दुल नजीर मुस्लिम शामिल हैं।
मार्च 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एक तरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है


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