मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 22 सितंबर : सिद्धपीठ महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में नवरात्रों की धूम आरंभ हो गई है। नवरात्रों के पहले दिन मंदिर में मां शैलपुत्री की पूजा अराधना आरंभ की गई।
इस अवसर पर मंदिर में भक्तों का तांता लग गया। नवरात्रों के इस शुभ अवसर पर मंदिर के कपाट 24 घंटे खुले रहेंगे तथा प्रतिदिन मंदिर में प्रसाद का वितरण एवं विशेष पूजा अर्चना का आयोजन होगा।
इस मौके पर मंदिर में शहर के प्रमुख उद्योगपति के.सी.लखानी, आर.के. जैन एवं उद्योगपति आर. के. बत्तरा ने मां का आर्शीवाद ग्रहण करते हुए मंदिर में माथा टेका।
मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने पूजा अर्चना का शुभारंभ करवाया। इस मौके पर मंदिर के चेयरमैन प्रताप भाटिया, कांशीराम, गिर्राजदत्त गौड़, फकीरचंद कथूरिया, राहुल मक्कड़, धीरज पुंजानी, दिनेश चितकारा, नेतराम गांधी, राजेश भाटिया, रमेश सहगल, अनिल ग्रोवर, अनिल भाटिया, कंवल खत्री, राकेश भाटिया, सुरेंद्र गेरा एवं सुनील हांडा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
इस अवसर पर प्रधान जगदीश भाटिया ने मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं को मां शैलपुत्री के संदर्भ में बताया और उनका गुणगान करते हुए कहा कि भगवान गणपति को विसर्जन के लिए विदाई देते ऐसा कहा जाता है कि मां शैलपुत्री अपने पूर्वजन्म में प्रजापति दक्षराज की कन्या थीं और तब उनका नाम सती था।
आदिशक्ति देवी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार दक्षराज ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन शंकर जी को नहीं बुलाया था। क्रोध से भरी सती जब अपने पिता के यज्ञ में गई तो दक्षराज ने भगवान शंकर के विरुद्ध बहुत अपशब्द कहा। देवी सती अपने पति भगवान शंकर का अपमान सहन नहीं कर पाई। उसके बाद उन्होंने वहीं यज्ञ की वेदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
अगले जन्म में देवी सती शैलराज हिमालय की पुत्री बनीं और शैलपुत्री के नाम से जानी गई। जगत-कल्याण के लिए इस जन्म में भी उनका विवाह भगवान शंकर से ही हुआ, पार्वती और हेमवती उनके ही अन्य नाम हैं। उनके अनुसार जो भी भक्त सच्चे मन से मां शैलपुत्री से जो भी मुराद मांगता है, वह अवश्य पूर्ण होती है।