हेपेटाइटिस से बचने के लिए समय पर जांच के साथ-साथ इलाज जरूरी
मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 28 जुलाई: हेपेटाइटिस से संक्रमण के कारण लीवर में सूजन आ जाती है। इस वजह से लीवर का काम प्रभावित होता है। लीवर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक होता है। यह भोजन पचाने के साथ-साथ खून में से टॉक्सिन्स को भी साफ करने में अह्म भूमिका निभाता है, इसलिए लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।
मैट्रो अस्पताल फरीदाबाद के सीनियर गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉ० विशाल खुराना ने बताया कि हेपेटाइटिस के प्रति लोगों को जागरूक करने लिए हर वर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है। डॉ. खुराना ने जानकारी देते हुए बताया कि मैट्रो अस्पताल फरीदाबाद में हर महीने 100 से 125 मरीज हेपेटाइटिस के देखे जाते हैं।
वहीं मैट्रो अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ० अंकुर गर्ग ने बताया कि हेपेटाइटिस बीमारी से लीवर संक्रमित हो जाता है और लीवर में सूजन की समस्या हो जाती है। कुछ लोगों का लीवर काम करना एक दम बंद कर देता है और गंभीर स्थिति में मौत भी हो जाती है। हेपेटाइटिस भी विषाणुजनित रोग है यानि यह बीमारी भी वायरस के कारण होती है। डॉ. अंकुर गर्ग ने बताया हेपेटाइटिस को ए, बी, सी, डी और ई श्रेणी में रखा जाता है। हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण शरीर में कई साल तक शांत रहता है। इस वजह से क्रॉनिक हेपेटाइटिस होने का खतरा रहता है। इस स्थिति में मरीज को लीवर फेल होने और कभी-कभी लीवर के कैंसर की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। भारत के तीन से पांच प्रतिशत लोग हेपेटाइटिस-बी के संक्रमण से जूझ रहे हैं। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो ये जानलेवा भी साबित हो सकती है ।
हेपेटाइटिस के प्रकार:-
हेपेटाइटिस-ए-
यह वायरस पानी और खाने के जरिए शरीर में आता है। हेपेटाइटिस-ए क्रॉनिक नहीं होता। यह लीवर को नुकसान नहीं पहुंचाता। इसमें इंफेक्शन होने के 15 से 45 दिन में लक्षण सामने आते हैं। ज्यादातर मामलों में वायरस खुद चला जाता है। हेपेटाइटिस-ए की वैक्सीन भी है। लेकिन खास जरूरत नहीं समझी जाती क्योंकि यह जानलेवा नहीं है। यह दूषित भोजन खाने या प्रदूषित पानी के पीने से होता है।
हेपेटाइटिस-बी-
यह वायरस खून, सीमन और शरीर के अन्य तरल पदार्थों के जरिए संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुंचता है। हेपेटाइटिस-बी शांत तरीके से अटैक करता है और व्यक्ति को इसके बारे में पता भी नहीं चलता। संक्रमित व्यक्ति के रक्त या अन्य शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान संक्रमित मां को बच्चे को, गर्भावस्था के दौरान अपना परीक्षण करना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति के साथ टूथब्रुश, रेजर या नाखून कैंची और सुइयों साझा करने से बचना चाहिए। बिना लाइसेंस वाले सुविधाओं से टैटू या शरीर के छेदों को नहीं करना चाहिए। हेपेटाइटिस-बी की भी वैक्सीन उपलब्ध है।
हेपेटाइटिस-सी-
इसमें वायरस इंफेक्शन होने के करीब डेढ़ से दो महीने बाद लक्षण नजर आते हैं। कई मामलों चार महीने लग जाते हैं। ऐसे मामलों को अक्यूट कहा जाता है। वहीं जब इंफेक्शन छह महीने से ज्यादा समय से हो, तब वह क्रॉनिक कहलाता है। इसमें मरीज के पूरी तरह ठीक होने के आसार कम हो जाते हैं। संक्रमित व्यक्ति के साथ टूथब्रश, रेजर या नाखून कैंची और सुइयों साझा करने से बचना चाहिए। बिना लाइसेंस वाले सुविधाओं से टैटू या शरीर के छेदों को नहीं करना चाहिए।
हेपेटाइटिस-डी-
इसे डेल्टा वायरस कहते हैं। यह एक तरह का इंफेक्शन है और इससे लीवर में जलन और सूजन की समस्या हो जाती है। अगर सूजन काफी लंबे समय तक रहता है। ऐसी स्थिति में लीवर कैंसर होने का खतरा भी रहता है। यह कभी अकेले नहीं होता है। अगर किसी को हेपेटाइटिस-बी और सी है। तब उसे हेपेटाइटिस-डी होने का खतरा रहता है।
हेपेटाइटिस-ई-
वायरस मुंह के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करता है। वायरस संक्रमित पानी पीने से किसी इंसान के शरीर में प्रवेश कर सकता है। दूषित खाने से भी इसका वायरस इंसानों के शरीर में प्रवेश करता है। यह भी लीवर को इफेक्ट करता है। हालांकि यह लंबे समय तक नहीं रहता है और कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।
हेपेटाइटिस के लक्षण:-
- हमेशा थकान महसूस होना।
- भूख न लगना और पेट दर्द होना।
- सिर दर्द और चक्कर आना।
- यूरिन का पीला होना आदि।
- कई दिनों तक तेज बुखार रहना।
हेपेटाइटिस के बचाव:-
- एल्कोहल, तंबाकू, ड्रग्स के सेवन से बचें।
- समय रहते टीकाकरण करा और तनाव कम लें।
- मसालेदार और अधिक तेल वाले खानों का कम सेवन करें।
- तैलीय, मसालेदार, मांसाहारी और भारी खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें।
- हरी पत्तेदार सब्जियां, विटामिन-सी युक्त फल, शाकाहारी आहार, ब्राउन राइस, पपीता, नारियल पानी, सूखे खजूर, किशमिश, बादाम और इलायची का भरपूर सेवन करना चाहिए।