आम आदमी पार्टी ने बड़ा खुलासा कर मंत्री व नियुक्ति पाने वाले उनके चहेते के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की, मंत्री से मांगा इस्तीफा
मंत्री को तुरंत पद से बर्खास्त कर मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की
नवीन गुप्ता
चंडीगढ़/हिसार,12 दिसंबर: हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने अंबाला छावनी हलके से संबंधित अपने चहेते अरुण पराशर को फर्जी कागजातों के आधार पर हरियाणा फार्मेसी काउंसिल का रजिस्ट्रार नियुक्त किया है। अरुण पराशर स्नातक भी नहीं है और जिस बोर्ड से दस जमा दो की परीक्षा पास की है वह डी फार्मेसी में दाखिले के लिए मान्यता प्राप्त नहीं है। यानि कि फर्जी है। यह खुलासा आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य एडवोकेट राजेश जाखड़ और राज्य कोषाध्यक्ष रमेश वर्मा ने किया। उन्होंने अपने आरोपों से संबंधित सभी सबूत भी दिए। इस अवसर पर युवा संयोजक राकेश सैनी, आरटीआई संयोजक नरेश सातरोडिय़ा, कार्यकारिणी सदस्य कर्मचंद गांधी, रमेश सोनी, वीनू जैन आदि उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि कागजात फर्जी होने के बारे में फार्मेसी काउंसिल के प्रधान ने स्वास्थ्य मंत्री को बता दिया था, बावजूद इसके उन्होंने जबर्दस्ती यह नियुक्ति करवाई है। इसलिए प्रदेश सरकार को तुरंत प्रभाव से मंत्री व अरुण पराशर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाकर उनके खिलाफ कार्रवाई करें और मंत्री को भी तमाम सरकारी कार्रवाइयों से दूर रखने व निष्पक्ष जांच के लिए मंत्री पद से उनको तुरंत बर्खास्त किया जाए।
उन्होंने बताया कि नियमानुसार हरियाणा फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार पद पर नियुक्ति काउंसिल के अनुमोदन के बाद ही होती है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के प्रधान को गत् 20 नवंबर को पत्र के माध्यम से सूचित किया कि अरुण पराशर को सरकार ने काउंसिल के रजिस्ट्रार के पद पर 89 दिनों के लिए कामचलाऊ नियुक्ति दे दी है। इसके जवाब में काउंसिल के प्रधान ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर अरुण पराशर की नियुक्ति पर भी सवाल उठाया। उन्होंने फार्मेसी एक्ट 1948 की धारा 26 का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत ‘काउंसिल ही रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्ति करने का सक्षम प्राधिकारी है जो सचिव के तौर पर भी कार्य करता है। राज्य केवल काउंसिल द्वारा की गई नुयक्ति की पूर्व मंजूरी ही प्रदान करता है।Ó उन्होंने कहा कि जिस अरुण पराशर की सरकार ने इस पद पर नियुक्ति की है उनके नाम का काउंसिल ने अनुमोदन भी नहीं किया है। उन्होंने अरुण पराश को ज्वाइन भी नहीं करवाया।
इस पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने काउंसिल के प्रधान को गत 26 नवंबर को अपने कार्यालय में बुलाया और नियुक्ति करवाने के आदेश दिए। उन्होंने विरोध किया और बताया कि अरुण पराशर फार्मेसी के ग्रेज्यूएट भी नहीं है और इन्होंने दस जमा दो की परीक्षा सेंट्रल बोर्ड ऑफ हायर एजूकेशन से की है जो डी फार्मेसी में दाखिले तक के लिए रिकोग्नाइज नहीं है। इन सभी तर्कों को स्वास्थ्य मंत्री ने नहीं माना और पराशर को ज्वाइन करवाने के आदेश दे दिए। इसके कारण उनको मजबूरन पराशर को ज्वाइन करवाना पड़ा।
उन्होंने मांग की है कि स्वास्थ्य मंत्री ने जानबूझकर फर्जी कागजातों के आधार पर काउंसिल में रजिस्ट्रार जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति करवाई है, उनको अपने पद पर बने रहने का अब कोई अधिकार नहीं है। साथ ही उन्होंने मांग की है कि अरुण पराशर और स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ भी धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया जाए और निष्पक्ष जांच के लिए दोनों को तुरंत पदमुक्त किया जाए ताकि वे दस्तावेजों से छेड़छाड़ ना कर सके।
ऐसे तो दवाइयों के नाम पर लुटता रहेगा आम आदमी
आप नेता राजेश जाखड़ ने कहा कि यह छोटा मामला नहीं है क्योंकि इसका आम आदमी पर बड़ा असर पड़ेगा। उन्होंने अपनी बात साबित करते हुए बताया कि जिस फार्मेसी काउंसिल को दवाइयों के धंधे को नियंत्रित करना होता है, वह जुगाड़बाज लोगों के हाथ चली जाएगी और फिर चिकित्सकों, अस्पतालों तथा दवाइयों के कमीशन का खेल आम आदमी को मरते दम तक और ज्यादा लूटने तथा कर्जवान बनाने का पुख्ता प्रबंध कर देगा। इस तरह की नियुक्तियों को रोकना पड़ेगा क्योंकि चिकित्सा के नाम पर लूट की छूट रोकने के लिए बनी संस्थाओं को भ्रष्टाचार से बचाना सामाजिक जिम्मेवारी है।